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प्रथम प्रतिपत्ति - संसार जीवों के दो भेद
जीवों के तीन प्रकार कहते हैं इसी प्रकार कोई कोई आचार्य चार, पांच, छह यावत् दस भेद संसारवर्ती जीवों के कहते हैं। दो से लगा कर दस प्रकार के संसारी जीव कहे गये हैं - ये नौ प्रतिप्रत्तियाँ हुई। जीवों के ये नौ ही प्रकार के प्रतिपादन (कथन) परस्पर भिन्न होते हुए भी विरोधी नहीं है। अपेक्षा भेद से ये सभी भेद सही हैं। क्योंकि विवक्षा के भेद से कथनों में भेद होता है; विरोध नहीं होता। टीकाकार ने 'प्रतिपत्ति' शब्द के संदर्भ में कहा है कि प्रतिपत्ति केवल शब्द रूप ही नहीं है अपितु शब्द के माध्यम से अर्थ में प्रवृत्ति कराने वाली है।
संसारी जीवों के दो भेद तत्थ णं जे एवमाहंसु 'दुविहा संसार समावण्णगा जीवा पण्णत्ता' ते एवमाहंसु तं जहा - तसा चेव थावरा चेव॥९॥ .. . भावार्थ - उन नौ प्रतिपत्तियों में जो दो प्रकार से संसार समापन्नक जीवों का कथन करते हैं वे
कहते हैं कि त्रस और स्थावर के भेद से जीव दो प्रकार के हैं। ... विवेचन - संसार समापन्नक जीवों की नौ प्रतिप्रत्तियों में से प्रथम प्रतिपत्ति का निरूपण करते हुए सूत्रकार ने संसारी जीवों के दो भेद कहे हैं - १. त्रस और २. स्थावर।
१. स - 'सन्ति-उष्णाघभितप्ताः सन्तो विवक्षितस्थानादुद्विजन्ति गच्छन्ति च छायाद्या सेवनार्थ स्थानान्तरमिति प्रसाः' - गर्मी आदि से तप्त होकर एक स्थान से छाया आदि का सेवन करने के लिये दूसरे स्थान पर जाते हैं वे त्रस जीव हैं। इस प्रकार त्रस नाम कर्म के उदय वाले जीव त्रस कहे गये हैं। अथवा 'त्रसन्ति-ऊर्ध्वमद्यस्तिर्यग चलन्तीति त्रसाः' - ऊंचे, नीचे और तिरछे जो चलते हैं वे त्रस जीव हैं। इस प्रकार के कथन से तेउकाय, वायुकाय और बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव त्रस हैं। आगम में तेजस्काय और वायुकाय को भी त्रस के अन्तर्गत माना है
"तसा तिविहा पण्णत्ता तं जहा - तेउकाइया वाउकाइया ओराला तसा पाणा" ____अर्थात् - त्रस जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं। यथा तेजस्काय, वायुकाय और औदारिक त्रस प्राणी।
तत्त्वार्थ सूत्र में भी कहा है - "तेजो वायुद्वीन्द्रियादयश्च त्रसाः" (अ० २ सूत्र १४) तेजस्काय, वायुकाय और बेइन्द्रिय आदि त्रस हैं। त्रस जीवों की उपरोक्त दोनों परिभाषाओं के अनुसार त्रस नाम कर्म के उदय वाले जीव "लब्धि त्रस" कहलाते हैं इसमें बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव आते हैं। जबकि गति करने वाले जीवों को "गति त्रस" कहा जाता है इसमें तेउकाय, वायुकाय और बेइन्द्रिय आदि सभी त्रस जीवों का समावेश हो जाता है क्योंकि तेउकाय और वायुकाय को गति
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