SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय प्रतिपत्ति- प्रथम तिर्यंचयोनिक उद्देशक - गंध और गंधशत तेइंदियाणं पुच्छा । गोयमा! अट्ठ जाईंकुल जाव मक्खाया। बेइंदियाणं भंते! कई जाई कुलकोडीजोणी० पुच्छा। गोयमा ! सत्त जाईकुलकोडीजोणी पमुह० ॥ ९७ ॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! चउरिन्द्रिय जीवों की कितनी जातिकुलकोडी कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! चउरिन्द्रिय जीवों की नौ लाख जातिकुलकोडी कही गई है। प्रश्न - हे भगवन् ! तेइन्द्रिय जीवों की कितनी जातिकुलकोडी कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! तेइन्द्रिय जीवों की आठ लाख जातिकुलकोडी कही गई है। प्रश्न - हे भगवन् ! बेइन्द्रिय जीवों की कितनी जातिकुलकोडी कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! बेइन्द्रिय जीवों की सात लाख जातिकुलकोडी कही गई है। गंध और गंधशत कइ णं भंते! गंधा पण्णत्ता ? कइ णं भंते! गंधसया पण्णत्ता ? गोयमा ! सत्त गंधा सत्त गंधसया पण्णत्ता । कइ णं भंते! पुप्फजाईकुलकोडीजोणिपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता ? गोयमा! सोलस पुप्फजाईकुलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता, तं जहा चत्तारि जलयाणं चत्तारि थलयाणं चत्तारि महारुक्खियाणं चत्तारि महागुम्मियाणं । कठिन शब्दार्थ - गंधा गंध (गंधांग), गंधसया गन्धशत - गंधांग की सौ उपजातियां, महागुम्मियाणं - महागुल्मिक । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! गंध (गंधांग) कितने कहे गये हैं ? हे भगवन् ! गंधशत कितने कहे गये हैं ? Jain Education International - २७५ उत्तर - हे गौतम! सात गंधांग और सात ही गंधशत हैं। प्रश्न- हे भगवन् ! फूलों की कितनी लाख जातिकुलकोडी कही गई है ? चार उत्तर - हे गौतम! फूलों की सोलह लाख जातिकुलकोडी कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं लाख जलज पुष्पों की, चार लाख स्थलज पुष्पों की, चार लाख महावृक्षों के पुष्पों की और चार लाख महागुल्मिक पुष्पों की । विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में गंधांग, गंधशत और फूलों की कुलकोटि विषयक कथन किया गया है । For Personal & Private Use Only - - www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy