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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - प्रथम तिर्यंचयोनिक उद्देशक - स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक २६७ " से किं तं संमुच्छिम जलयरपंचेंदिय तिरिक्खजोणिया? . .. संमुच्छिम जलयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगसंमुच्छिम जलयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया अपज्जत्तगसंमुच्छिम जलयरपंचेंदिय तिरिक्खजोणिया।से तं समुच्छिम जलयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया। से किं तं गब्भवक्कंतिय जलयरपंचेंदिय तिरिक्खजोणिया? गब्भवक्कंतिय जलयरपंचेंदिय तिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगगब्भवक्कंतिय जलयरपंचेंदिय तिरिक्खजोणिया अपज्जत्तगगब्भवक्कंतिय जलयरपंचेंदिय तिरिक्खजोणिया, से तं गब्भवक्कंतिय जलयर पंचेंदिय तिरिक्ख- ... जोणियां, से तं जलयरपंचेंदिय तिरिक्खजोणिया। भावार्थ - जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कितने प्रकार के कहे गये हैं ? जलचर पंचेन्द्रिय तियचयोनिक दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - सम्मूर्छिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक और गर्भव्युत्क्रांतिक (गर्भज) जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक। सम्मूर्छिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक का क्या स्वरूप है ? । सम्मूर्छिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच दो प्रकार के कहे गये हैं - १. पर्याप्तक संमूर्छिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक और २. अपर्याप्तक संमूर्छिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक। यह सम्मूर्छिम . जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों का कथन हुआ। गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कितने प्रकार के कहे गये हैं ? गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - पर्याप्तक गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच और अपर्याप्तक गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच। यह गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक का वर्णन हुआ। इस प्रकार जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक का कथन हुआ। स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक से किं तं थलयरपंचेंदिय तिरिक्खजोणिया? थलयरपंचेंदिय तिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - चउप्पयथलयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया परिसप्प थलयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया। से किं तं चउप्पयथलयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया? चउप्पयथलयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - समुच्छिम . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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