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जीवाजीवाभिगम सूत्र
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तईओणेरइय उद्देसो- तृतीय नैरयिक उद्देशक
नैरयिकों के विषय में और अधिक जानकारी देने के लिये सूत्रकार इस तृतीय नैरयिक उद्देशक का प्रारंभ करते हैं, जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
नैरयिकों में पुद्गल परिणमन इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइया केरिसयं पोग्गलपरिणाम पच्चणुभवमाणा विहरंति? __गोयमा! अणिटुं जाव अमणामं एवं जाव अहेसत्तमाए एवं णेयव्वं। - भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के पुद्गल परिणाम का अनुभव करते हैं?
उत्तर - हे गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक अनिष्ट यावत् अमनाम पुद्गलों के परिणमन का अनुभव करते हैं। इसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी तक समझ लेना चाहिये।
विवेचन - नैरयिक जीव जिन पुद्गलों को ग्रहण करते हैं. उनका परिणमन अनिष्ट, अकान्त, • अप्रिय, अमनोज्ञ और अमनाम रूप में ही होता है। इसी प्रकार यावत् सातवीं नरक पृथ्वी तक के 'नैरयिकों द्वारा गृहीत पुद्गलों का परिणमन अशुभ रूप में ही होता है। , . और किन किन का परिणमन नैरयिकों के लिये अशुभ रूप होता है इसके लिये टीका में दो. संग्रहणी गाथाएं दी हैं जो इस प्रकार है -
पोग्गल परिणामे वेयणा य लेस्सा य णाम गोएय। अरइ भए य सोगे, खुहा पिवासा य वाही य॥१॥ उस्सासे अणुतावे कोहे माणे य माय लोभे य। चत्तारि य सण्णाओणेरइयाणं तु परिणामा॥ २॥
अर्थात् १. पुद्गल परिणाम २. वेदना ३. लेश्या ४. नाम ५. गोत्र ६. अरति ७. भय ८. शोक ९. क्षुधा १०. पिपासा ११. व्याधि १२. उच्छ्वास १३. अनुताप १४. क्रोध १५. मान १६. माया १७. लोभ १८-२१. चार संज्ञाएं (आहार संज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुन संज्ञा परिग्रह संज्ञा) इन सब का परिणमन नैरयिकों के लिए अशुभ होता है।
सातवीं पृथ्वी में जाने वाले जीव एत्थ किर अइवयंति, णरवसभा केसवा जलयरा य। मंडलिया रायाणो, जे य महारंभ कोडुंबी॥१॥
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