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जीवाजीवाभिगम सूत्र
पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक जीव हैं वे जीव क्या महाकर्म वाले, महाक्रिया वाले, महाआस्रव वाले और महावेदना वाले हैं?
उत्तर - हाँ गौतम! वे रत्नप्रभा पृथ्वी के पर्यन्तवर्ती प्रदेशों के पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक जीव महाकर्म वाले, महाक्रिया वाले, महाआस्रव वाले और महावेदना वाले हैं। इसी प्रकार यावत् अधःसप्तम पृथ्वी तक कह देना चाहिये। ___ विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में रत्नप्रभा आदि के पर्यन्तवर्ती पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक जीव महाकर्म वाले, महाक्रियावाले, महाआस्रव वाले और महावेदना वाले कहे गये हैं।
. शंका - ये जीव एकेन्द्रिय अवस्था में रहे हुए हैं, इनके पास वैसे साधन भी नहीं हैं कि वे महा पापकर्म और महारंभ आदि कर सके फिर भी वे महाकर्म, महाक्रिया, महाआस्रव और महावेदना वाले कैसे कहे गये हैं?
समाधान - उन जीवों ने पूर्वजन्म में जो प्राणातिपात आदि महाक्रिया की है उनसे वे निवृत्त नहीं हुए हैं अतएव वर्तमान में भी वे महाक्रिया वाले हैं। महाक्रिया का कारण महास्रव है। महास्रव से निवृत्त नहीं होने के कारण वे महाक्रिया वाले हैं। महास्रव और महाक्रिया के कारण असातावेदनीय कर्म उनके प्रचुर मात्रा में हैं अतएव वे महाकर्म वाले और महावेदना वाले भी हैं।
पुढविं ओगाहित्ता, णरगा संठाणमेव बाहल्लं। विक्खंभ परिक्खेवे, वण्णो गंधो य फासो य॥१॥ तेसिं महालयाए, उवमा देवेण होइ कायज्वा। जीवा य पोग्गला वक्कमति तह सासया णिरया॥२॥ उववाय परिमाणं अवहारुच्चत्तमेव संघयणं। संठाण वण्ण गंधा फासा ऊसासमाहारे॥३॥ लेसा दिट्ठी णाणे, जोगुवओगे तहा समुग्धाया। तत्तो खुहा पिकासा, विजयणा वेवणा य भए॥४॥ उववाओ पुरिसाणं, और वेवणाए दुनिहाए। ठिइ उव्वट्टण पुढवी उ उकालो सब जीवाणं॥५॥ एयाओ संगहणी गाहाओ॥१४॥
॥बीओणेरड्य उद्देसो समत्तो॥
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