SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५६ जीवाजीवाभिगम सूत्र पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक जीव हैं वे जीव क्या महाकर्म वाले, महाक्रिया वाले, महाआस्रव वाले और महावेदना वाले हैं? उत्तर - हाँ गौतम! वे रत्नप्रभा पृथ्वी के पर्यन्तवर्ती प्रदेशों के पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक जीव महाकर्म वाले, महाक्रिया वाले, महाआस्रव वाले और महावेदना वाले हैं। इसी प्रकार यावत् अधःसप्तम पृथ्वी तक कह देना चाहिये। ___ विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में रत्नप्रभा आदि के पर्यन्तवर्ती पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक जीव महाकर्म वाले, महाक्रियावाले, महाआस्रव वाले और महावेदना वाले कहे गये हैं। . शंका - ये जीव एकेन्द्रिय अवस्था में रहे हुए हैं, इनके पास वैसे साधन भी नहीं हैं कि वे महा पापकर्म और महारंभ आदि कर सके फिर भी वे महाकर्म, महाक्रिया, महाआस्रव और महावेदना वाले कैसे कहे गये हैं? समाधान - उन जीवों ने पूर्वजन्म में जो प्राणातिपात आदि महाक्रिया की है उनसे वे निवृत्त नहीं हुए हैं अतएव वर्तमान में भी वे महाक्रिया वाले हैं। महाक्रिया का कारण महास्रव है। महास्रव से निवृत्त नहीं होने के कारण वे महाक्रिया वाले हैं। महास्रव और महाक्रिया के कारण असातावेदनीय कर्म उनके प्रचुर मात्रा में हैं अतएव वे महाकर्म वाले और महावेदना वाले भी हैं। पुढविं ओगाहित्ता, णरगा संठाणमेव बाहल्लं। विक्खंभ परिक्खेवे, वण्णो गंधो य फासो य॥१॥ तेसिं महालयाए, उवमा देवेण होइ कायज्वा। जीवा य पोग्गला वक्कमति तह सासया णिरया॥२॥ उववाय परिमाणं अवहारुच्चत्तमेव संघयणं। संठाण वण्ण गंधा फासा ऊसासमाहारे॥३॥ लेसा दिट्ठी णाणे, जोगुवओगे तहा समुग्धाया। तत्तो खुहा पिकासा, विजयणा वेवणा य भए॥४॥ उववाओ पुरिसाणं, और वेवणाए दुनिहाए। ठिइ उव्वट्टण पुढवी उ उकालो सब जीवाणं॥५॥ एयाओ संगहणी गाहाओ॥१४॥ ॥बीओणेरड्य उद्देसो समत्तो॥ aire Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy