SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५४ जीवाजीवाभिराम सूत्र का .. पाwari विकासन्दासमहतियक सर्वमहती सभी में बड़ी सम्पड्डिया सर्व सुद्रिका-सब में छोटी, सव्वंतेसु - सर्वान्तेषु-सर्वान्तों में-सभी अन्तर्भागों में। १.भावार्थ- प्रश्न -भा प्रश्न - हे भगवन! क्या यह रत्नप्रभा पृथ्वी दूसरी पृथ्वी की अपेक्षा मोटाई में बड़ी है और सर्वान्तों में सबसे छोर्टी है? उत्तर - हाँ गौतम! यह रत्नप्रभा पृथ्वी दूसरी पृथ्वी की अपेक्षा मोटाई में बड़ी है और लम्बाई चौडाड में छोटा है। कार ENE FREE FILE - RITEST प्रश्न - हे भगवन्! क्या शर्कराप्रभा पृथ्वी तीसरी पृथ्वी से मोटाई में बड़ी और सर्वान्तों में छोटी है ? A . T ETite का Fisay or puri TV उत्तर - हाँ गौतम! दूसरी पृथ्वी तीसरी पृथ्वी की अपेक्षा मोटाई में बड़ी और लम्बाई चौड़ाई में छोटी है। इसी प्रकार यावत् अधःसप्तम पृथ्वी तक अर्थात् छठी पृथ्वी सातवीं पृथ्वी की अपेक्षा मोटाई में बड़ी और लम्बाई चौड़ाई में छोटी है। कविवेचन - रत्नप्रभा आदि आग ऑगे की पृथ्वी मोटाई में छोटी है और लम्बाई चौड़ाई में बड़ी . हैं। मात्र रत्नप्रभा पृथ्वी बाहल्य की अपेक्षा सबसे बड़ी और लम्बाई चौड़ाई में सबसे छोटी है। क्योंकि रत्नप्रभा पृथ्वी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजना शर्कराप्रभा की एक लाख बत्तीस हजार, बालुकाप्रभा की एक लाख अट्ठाईस हजार, पंकप्रभा की एक लाख बीस हजार, धूमप्रभा को एक खाख अठारहा हजार, तमःप्रभाकिी एक लाख सोलह हजार और अधःसप्तम पृथ्वी की मोटाई एक लाख आठ हजार है EिE ENTIRE : भौरत्नप्रभा पृथ्वी की लम्बाई चौड़ाई एक सजादूसही पृथ्वी की लम्बाई चौड़ाई दो राजू तीसरी पृथ्वी की तीन राजा चौथी की बाराणा पाचही की पांच रामाण्डी की छह साल और सातवीं पृथ्वी की लम्बाई चौड़ाई सात राजू है। TOFPRATE TRI Pाणी sy_iris fPEHATTIS THAT ARE Rampat HE नरक गम उपपात .. . . णिरयावासंसि सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता पुढवीकाइपत्ताए मात्र नयताउताणापला वणस्सइकाइयत्ताए प्राय STORYणना कामगाणा, माता गोयमा। असई अदुवा अjांत खत्तो पर्व जाव आहेसरमाए पुवतीए णवरं जत्थ जत्तिया णरंगा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy