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________________ जीवानीवाभिगम सूत्र ििणउसिष्योवमएंगमहं अयपिंड उदगवारसमाण गहाय तं ताविय तविय कोट्टिय कोट्टिय उब्मिादय 'उभिदिय चुण्णिय चुणिर्य जार्च एगाहं वा दुयाह वा तियाह वा उकोसण अद्धमास संहणेज्जा, से णे त सीर्य सीईभूयं अओमएणं सदसएणं गहाय असबभावपट्रवणाए.उसिणवेयणिज्जेंस णरएस.पक्खिवेज्जा, से णं तं उम्मिसियजाए . HIEFIFTHE FATHE ". णिमिसियंतरेणं पणरवि पच्चदरिस्सामित्ति कटू पविरायमेव पासेज्जा पविलीणमेव पागजा पविथपेव पासेज्जा पो चेव पां संचाएइ अविरायं वा अविलीणं वा अविडत्यं जामुणरविपच्चद्धरित्तए। फोनः .. TET .. . FETS कठिसकार्य-कस्मारदारए लुहार का लड़का, तरुण-तरुण-युवा विशिष्ट अभिनव वर्ण आदि मला जमवायुगवान कालाद्विजत्तम उपद्रकों से रसित, अप्पायंके रोम रहित थिरगहत्थे - जिसके हाथों के अग्रभाग स्थिर हैं, दढपाणिपायपासपिटुंतरोरुसंघायपरिणए - जिसके हाथ, पांव, मिसलिम सोडौफआएं सुदृढ़ और मजबूत है, संघापागाजवणावग्गामापमहामासमत्ये लांसने कूदने, नेम के साथ चलने और मांडले में समर्थ, तलजमलजुयल (फलिहणिभ) बाहू.- दो शाल वृक्ष के जैसे सरल लंबे शाद नाथों वाला, घाणणिचियवलियवद्वखंधे। जिसके कंधे, घने पुष्ट और सोल हैं, स्वागदहणामुद्वियसमायणिचियगतगत्त्रे चमड़े की बेंत, मुद्गर तथा मुष्टि के प्रहारों से परिपुष्ट बने हुए शरीर वाला, उरस्सबलसमण्णागए - आन्तरिक उत्साह और बल से युक्त, केए - छेकबहत्तरकला निपुण, इखे दक्ष-शीघ्रता से काम करने वाला, पढे - प्रष्ठः-हितमितभाषी, । डिसिप्पोवगए, निपुण शिल्प युक्त, अपिंड - लोहे के गोले को उद्गवारसाणं - जल से भरे छोटे घड़े के समान, ताविय- तपा कर कोडिय - कूट कर, उब्भिंदिय - काट कर, चुणिय - चूर्ण कर, संहणेजा - ऐसा करता रहे. संदसएवं - संडासी से, अम्मिसियणिमिसियंतरेण - उन्मेष-निमेष (पल भर) में, पच्चद्धरिस्सामि - निकाल लूंगा, पविरायमेव - प्रस्फुटित होता हुआ, पासेज्जा - पश्येत्-देखता है (दिखाई देता है) पविद्धत्थमेव भस्मीभूत होता हुआ, अविरायं - अप्रस्फुटित, अविलीणं - पिजीवाखखनीअविध्वस्ताf pari ! SERA: भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उष्ण वेदना वाले नरकों में नैरसिक किस-प्रकार की उष्ण वेदना का अनुभव करते हैं ? ESME TUNETT E ERTONTRE उत्तर - हे गौतम! जैसे कोई लुहार का लड़का, जो तरुण, बलवान, युगवान् और रोग रहित हो भागपशपणामकाराषUTITISEMED INE जिसके दोनों हाथों का अंग्रभाग स्थिर हो, जिसके हाथ, पाव, पसलियां, पीठ और जंघाएं दृढ और पानीपत हामी धन, कर्दन का का साथ चलने और फांदने में समर्थ हो, जो कठोर वस्तु को भी चूिरमधूर विकासकती हा जोहदो साल वृक्ष जैसे सरल लब पुष्ट बाई चाला हो, जिसके बधे धने पुष्ट Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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