________________
२४०
जीवाजीवाभिगम सूत्र
यहां पर नैरयिकों में जो अवधि का क्षैत्रिक विषय चार कोस आदि बताया गया है वह प्रमाण अंगुल के कोस से समझना चाहिये। प्रमाणांगुल के चार कोस का प्रमाण अंगुल का एक योजन होता .. है। ऐसे एक योजन में वर्तमान के चार हजार लगभग किलोमीटर होने की संभावना की जाती है। अवधि का क्षैत्रिक विषय सर्वत्र प्रमाण अंगुल के माप से ही बताया गया है। .
नैरयिकों में समुद्घात इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं कइ समुपया पण्णत्ता? .
गोयमा! चत्तारि समुग्घाया पण्णत्ता, तं जहा - वेयणा समुग्घाए, कसाय समुग्याए, मारणंतिय समुग्घाए, वेउव्वियसमुग्घाए एवं जाव अहेसत्तमाए॥८८॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों के कितने समुद्घात कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों के चार समुद्घात कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, मारणांतिक समुद्घात और वैक्रिय समुद्घात। इसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी तक कह देना चाहिये।
नैरयिकों की भूख-प्यास इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए णेरड्या केरिसयं खुहप्पिवासं पच्चणुभवमाणा विहरंति?
गोयमा! एगमेगस्स णं रयणप्पभाए पुढविणेरइयस्स असब्भावपट्ठवणाए सब्बोदही वा सबपोग्गले वा आसगंसि पक्खिवेज्जा णो चेव णं से रयणप्पभाए पुढवीए णेरइए तित्ते वा सिया वितण्हे वा सिया, एरिसया णं गोयमा! रयणप्पभाए णेरड्या खुहप्पिवासं पच्चणुभवमाणा विहरंति, एवं जाव अहेसत्तमाए॥ ___ कठिन शब्दार्थ - असम्भावपट्ठवणाए - असद्भावप्रस्थापनया-असद्भाव (असत्) कल्पना से सव्वोदही- सभी समुद्रों को, सव्वपोग्गले - सभी पुद्गलों को, आसगंसि - मुख में, पक्खिवेज्जा - प्रक्षिपेत्-निक्षिपेत्-डाल दिया जाये, खुहप्पिवासं - क्षुत् पिपासाम्-क्षुधा (भूख) पिपासा (प्यास)भूख प्यास की इच्छा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक भूख और प्यास की कैसी वेदना का अनुभव करते हैं? - उत्तर - हे गौतम! असत् कल्पना के अनुसार यदि किसी एक रत्नप्रभा नैरयिक के मुख में सब
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org