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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - द्वितीय नैरयिक उद्देशक - नैरयिक जीवों की अवगाहना २३१ नैरयिकों की संख्या इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइया एक्कसमएणं केवइया उववजंति? गोयमा! जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति, एवं जाव अहेसत्तमाए। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में नैरयिक जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? उत्तर - हे गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी में नैरयिक जीव जघन्य एक, दो, तीन उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात भी उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार यावत् अधःसप्तम पृथ्वी तक कह देना चाहिये। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए रइया समए समए अवहीरमाणा अवहीरमाणा केवइ कालेणं अवहिया सिया? गोयमा! ते णं असंखेज्जा समए समए अवहीरमाणा अवहीरमाणा असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति णो चेव णं अवहिया सिया जाव अहेसत्तमाए। कठिन शब्वदार्थ - अवहीरमाणा - अपहार करने-निकाले जाने पर, अवहिया - अपहार-खाली भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों का प्रतिसमय एक एक का अपहार करने पर कितने समय में रत्नप्रभा खाली हो सकती है? उत्तर - हे गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों में से यदि प्रति समय एक एक नैरयिक का अपहार किया जाय तो असंख्यात उत्सर्पिणियाँ, असंख्यात अवसर्पिणियां व्यतीत हो जाने पर भी यह खाली नहीं हो सकती। इसी प्रकार सातवीं पृथ्वी तक समझना चाहिये। विवेचन - यदि प्रत्येक समय एक नैरयिक जीव रत्नप्रभा पृथ्वी से निकले तो संपूर्ण जीवों को निकलने में असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल लग जायगा। यह बात नैरयिक जीवों की संख्या बताने के लिये कही गई है वस्तुतः ऐसा न कभी हुआ है, न होता है और न होगा। शर्कराप्रभा आदि नरक के नैरयिक जीवों की संख्या भी इसी प्रकार समझनी चाहिये। नैरयिक जीवों की अवगाहना - इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता? - गोयमा! दुविहा सरीरोगाहणा पण्णत्ता, तं जहा - भवधारणिज्जा य उत्तरवेउब्बिया य। तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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