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________________ जीवाजीवाभिगम सूत्र इस अपेक्षा से वे अशाश्वतं हैं । इस तरह अपेक्षा भेद से रत्नप्रभा आदि के नरकावास शाश्वत भी हैं और अशाश्वत भी हैं। २३० नरकों में उपपात इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए णेरड्या कओहिंतो उववज्जंति किं असण्णीहिंतो उववज्जंति, सरीसिवेहिंतो उववज्जंति, पक्खीहिंतो उववज्जंति, चउप्पएहिंतो उववज्र्ज्जति, उरगेहिंतो उववज्र्ज्जति, इत्थीयाहिंतो उववज्र्ज्जति, मच्छमणुएहिंतो उववज्जति ? गोयमा! असण्णीहिंतो उववज्जंति जाव मच्छमणुएहिंतो वि उववज्जति । असण्णी खलु पढमं दोच्चं च सरीसिवा तइय पक्खी । सीहा जंति चउत्थिं उरगा पुण पंचमिं जंति ॥ १ ॥ छट्ठि च इत्थियाओ मच्छा मणुया य सत्तमिं जंति । जाव असत्तमाएं पुढवीए णेरड्या णो असण्णीहिंतो उववज्र्ज्जति जाव णो इत्थियाहिंतो उववज्जंति मच्छमणुस्सेहिंतो उववज्र्ज्जति ॥ भावार्थ प्रश्न हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? - क्या असंज्ञी जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं, सरीसृपों से आकर उत्पन्न होते हैं, पक्षियों से आकर उत्पन्न होते हैं, चतुष्पदों से आकर उत्पन्न होते हैं, उरपरिसर्पों से आकर उत्पन्न होते हैं, स्त्रियों से आकर उत्पन्न होते हैं या मत्स्यों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक असंज्ञी जीवों से आकर भी उत्पन्न होते हैं यावत् मत्स्यों और मनुष्यों से आकर भी उत्पन्न होते हैं। इस संबंध में गाथा का अर्थ इस प्रकार है असंज्ञी जीव पहली नरक तक, सरीसृप दूसरी नरक तक, पक्षी तीसरी नरक तक, सिंह चौथी नरक तक, उरग पांचवीं नरक तक, स्त्रियां छठी नरक तक और मत्स्य एवं मनुष्य सातवीं नरक तक जाते हैं । - विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि कौन जीव कौनसी नरक तक उत्पन्न हो सकता है। असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय पहली नारकी तक, भुजपरिसर्प (नेवला चूहा आदि) दूसरी नरक तक, खेचर पक्षी (कौवा, कबूतर आदि) तीसरी नरक तक, स्थलचर अर्थात् बैल, घोड़ा, गधा, सिंह आदि चौथी नरक तक, उरपरिसर्प- अजगर आदि पांचवीं नरक तक, स्त्रियाँ (मनुष्य स्त्रियाँ, जलचर स्त्रियाँ) छठी नरक तक और पुरुषवेदी जलचर (मच्छ आदि) और मनुष्य सातवीं नरक तक जा सकते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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