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जीवाजीवाभिगम सूत्र
णं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई आयामविक्खंभेणं असंखेज्जाई जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं पण्णत्ता एवं जाव तमाए। __ अहेसत्तमाए णं भंते! पुच्छा।
गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - संखेजवित्थडे य असंखेजवित्थडा य, तत्थ णं जे ते संखेज्जवित्थडे से णं एक्कं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं तिण्णिजोयणसयसहस्साइं सोलस सहस्साई दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए तिषिण कोसे य अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलयं च किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ता, तत्थ णं जे ते असंखेज्जवित्थडा तेणं असंखेज्जाई जोयणसयसहस्साइं आयामविक्खंभेणं असंखेज्जाई जाव परिक्खेवेणं पण्णत्ता॥८२॥
कठिन शब्दार्थ - संखेज्जवित्थडे - संख्यात योजन के विस्तार वाले, असंखेजवित्थडा - असंख्यात योजन के विस्तार वाले। - भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावासों की लम्बाई-चौड़ाई तथा परिधि कितनी है?
उत्तर - हे गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावास दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - १. संख्यात योजन के विस्तार वाले और २. असंख्यात योजन के विस्तार वाले। इनमें जो संख्यात योजन के विस्तार वाले हैं उनका आयामविष्कंभ (लम्बाई चौड़ाई) संख्यात हजार योजन है और परिक्षेप (परिधि) भी संख्यात हजार योजन की है। इनमें जो असंख्यात योजन के विस्तार वाले हैं उनका आयाम विष्कंभ असंख्यात हजार योजन और परिधि भी असंख्यात हजार योजन की है। इसी तरह छठी पृथ्वी तक कहना चाहिये।
प्रश्न - हे भगवन्! अधःसप्तम पृथ्वी के नरकावासों की लम्बाई चौड़ाई और परिधि कितनी है?
उत्तर - हे गौतम! अधःसप्तम पृथ्वी के नरकावास दो प्रकार के कहे गये हैं - १. संख्यात योजन के विस्तार वाले और २. असंख्यात योजन के विस्तार वाले। इनमें जो संख्यात योजन के विस्तार वाला है वह एक लाख योजन के आयाम विष्कंभ वाला है उसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्तावीस योजन तीन कोस, एक सौ अट्ठावीस धनुष, साढे तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। जो असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं उनका आयाम विष्कंभ असंख्यात हजार योजन और परिधि भी असंख्यात हजार योजन की है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में नरकावासों की मोटाई लम्बाई चौड़ाई और परिधि बताई गई है जो मूल पाठ एवं भावार्थ से ही स्पष्ट है।
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