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' जीवाजीवाभिगम सूत्र
णंदिमुयंगसंठिया आलिंगयसंठिया सुघोससंठिया दहरयसंठिया पणवसंठिया पडहसंठिया भेरिसंठिया झल्लरीसंठिया कुतुंबगसंठिया णालिसंठिया एवं जाव तमाए॥ ____कठिन शब्दार्थ - आवलियपविट्ठा - आवलिका प्रविष्ट, आवलियबाहिरा - आवलिका बाह्य तंसा - त्र्यंत्र (त्रिकोण), चउरंसा - चउरंस्र (चतुष्कोण), णाणासंठाणसंठिया - नाना संस्थान संस्थित्तनाना आकार के। ___ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावासों का आकार कैसा कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावास दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - १. आवलिका प्रविष्ट और २. आवलिका बाह्य। इनमें जो आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं वे तीन प्रकार के कहे गये हैं१. गोल २. त्रिकोण और ३. चतुष्कोण। जो आवलिका बाह्य हैं वे नाना प्रकार के आकारों के हैं जैसे - लोहे की कोठी के आकार के, मदिरा बनाने हेतु पिष्ट आदि पकाने के बर्तन के आकार के, कंदू-हलवाई के पाक पात्र के आकार के, लोही-तवा के आकार के, कडाही के आकार के, थाली-ओदन पकाने के बर्तन के आकार के, पिढरक (जिसमें बहुत से मनुष्यों के लिए भोजन पकाया जाता है ऐसे पात्र) के आकार के, कृमिक (जीव विशेष) के आकार के, कीर्णपुटक के आकार के, तापस के आश्रम के आकार के, मुरज (वाद्य विशेष) के आकार के, मृदंग के आकार के, नन्दिमृदंग के आकार के, आलिंगक के आकार के, सुघोषा घंटे के आकार के, दर्दर के आकार के, पणव (ढोल विशेष) के आकार के, पटह (ढोल) के आकार के, भेरी के आकार के, झल्लरी के आकार के, कुस्तुम्बक (काद्य विशेष) के आकार के और नाडी-घटिका के आकार के हैं। इस प्रकार छठी नरक पृथ्वी तक समझना चाहिये।
अहे सत्तमाए णं भंते! पुढवीए णरगा किं संठिया पण्णत्ता? । गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - वट्टे य तंसा य। भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! सातवीं नरक पृथ्वी के नरकावासों का संस्थान कैसा कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! सातवीं नरक पृथ्वी के नरकावासों के संस्थान दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - वृत्त (गोल) और त्रिकोण। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सातों नरक पृथ्वियों के नरकावासों के संस्थान का निरूपण किया गया है।
नरकावासों की मोटाई आदि इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए णरगा केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ता?
गोयमा! तिण्णि जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ता, तं जहा - हेट्ठा घणा सहस्सं मज्झे झुसिरा सहस्सं उप्पिं संकुइया सहस्सं, एवं जाव अहे सत्तमाए।
कठिन शब्दार्थ - घणा - घन, झुसिरा - झुषिर (खाली), संकुइया - संकुचित।
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