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जीवाजीवाभिगम सूत्र
बीओणेरइय उद्देसो- द्वितीय नैरयिक उद्देशक
जीवाजीवाभिगम सूत्र की तीसरी प्रतिपत्ति के प्रथम नैरयिक उद्देशक में नरक पृथ्वियों के नाम, गोत्र, बाहल्य आदि का वर्णन करने के पश्चात् सूत्रकार इस द्वितीय नैरयिक उद्देशक में नरक पृथ्वियों के नरकावास आदि का वर्णन करते हैं जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
कइणं भंते! पुढवीओ पण्णत्ताओ? - गोयमा! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - रयणप्पी जाव अहेसत्तमा।
नरकावास कहाँ हैं? इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्स बाहल्लाए उवरि केवइयं ओगाहित्ता हेट्ठा केवइयं वज्जित्ता मज्झे केवइए केवइया णिरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता? .
गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्स बाहल्लाए उवरि एगंजोयणसहस्सं ओगाहित्ता हेट्ठा वि एगंजोयणसहस्सं वज्जित्ता मज्झे अडसत्तरी जोयणसयसहस्सा, एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं तीसं णिरयावाससयसहस्साइं भवंति त्तिमक्खाया।
कठिन शब्दार्थ - उवरि - ऊपर, ओगाहित्ता - अवगाहन कर, हेट्ठा - नीचे, वग्जित्ता - छोड़ कर, मज्झे- मध्य में।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पृथ्वियाँ कितनी कही गई हैं ?
उत्तर - हे गौतम! पृथ्वियाँ सात कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं - रत्नप्रभा यावत् अध: सप्तमपृथ्वी।
प्रश्न - हे भगवन् ! एक लाख अस्सी हजार योजन प्रमाण बाहल्य वाली रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर से कितनी दूर जाने पर और नीचे के कितने भाग को छोड़ कर मध्य के कितने भाग में कितने लाख नरकावास कहे गये हैं?
उत्तर - हे गौतम! इस एक लाख अस्सी हजार योजन प्रमाण बाहल्य वाली रत्नप्रभा पृथ्वी के एक हजार योजन का ऊपरी भाग छोड़ कर और नीचे का एक हजार योजन का भाग छोड़ कर मध्य में एक लाख अठहत्तर हजार योजन प्रमाण क्षेत्र में तीस लाख नरकावास कहे गये हैं।
विवेचन - शंका - प्रथम उद्देशक में पृथ्वियाँ कितनी हैं ? इस प्रश्न का उत्तर दिया जा चुका है फिर इस द्वितीय उद्देशक के प्रारंभ में पुनः यह प्रश्न करने का क्या कारण है ?
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