________________
तृतीय प्रतिपत्ति - प्रथम नैरयिक उद्देशक - बाहल्य की अपेक्षा तुल्यता आदि
२१७
तीसरी नरक पृथ्वी की मोटाई एक लाख अट्ठाईस हजार योजन की है। चौथी नरक पृथ्वी की मोटाई एक लाख बीस हजार योजन की है पांचवीं नरक पृथ्वी की मोटाई एक लाख अठारह हजार योजन की है छठी नरक पृथ्वी की मोटाई एक लाख सोलह हजार योजन की है सातवीं नरक पृथ्वी की मोटाई एक लाख आठ हजार योजन की है
उपरोक्त पृथ्वियों की मोटाई देखने से स्पष्ट प्रतीत होता है कि बाहल्य की अपेक्षा पूर्व पूर्व की ... पृथ्वी अपनी पिछली पृथ्वी की अपेक्षा विशेषाधिक ही है तुल्य या संख्यातगुणा नहीं।
विस्तार की अपेक्षा पिछली पिछली पृथ्वी की अपेक्षा पूर्व-पूर्व की पृथ्वी विशेषहीन है तुल्य या संख्यातगुणाहीन नहीं। रत्नप्रभा में प्रदेश आदि की वृद्धि होने पर उतने ही क्षेत्र में शर्कराप्रभा आदि में भी वृद्धि होती है, अतएव विशेषहीनता ही घटित होती है। . अंत में गौतमस्वामी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के प्रति अपनी अटूट और अनुपम श्रद्धा व्यक्त । करते हुए फरमाते हैं कि हे भगवन्! आपने जो कुछ फरमाया वह पूर्णतया वैसा ही है, सत्य है, यथार्थ है। ऐसा कह कर गौतम स्वामी भगवान् को वंदन नमस्कार करके तप संयम से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरते हैं।
॥जीवाजीवाभिगम सूत्र की तीसरी प्रतिपत्ति का प्रथम नैरयिक उद्देशक समाप्त॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org