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जीवाजीवाभिगम सूत्र
७. आकाशास्तिकाय ८. आकाशास्तिकाय का देश ९. आकाशास्तिकाय का प्रदेश और १०. अद्धा समय (काल)। इन दस भेदों का विशेष वर्णन प्रज्ञापना सूत्र से जानना चाहिये।
१. धर्मास्तिकाय - जीवों और पुद्गलों को गति करने में जो सहायक होता है वह धर्मास्तिकाय है। जिस प्रकार मछली को तैरने में जल सहायक होता है उसी प्रकार जीव और पुद्गलों की गति में निमित्त कारण के रूप में धर्मास्तिकाय सहायक होता है।
२. धर्मास्तिकाय का देश - धर्मास्तिकाय के द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी आदि बुद्धिकल्पित विभाग को धर्मास्तिकाय का देश कहते हैं। वास्तव में तो धर्मास्तिकाय एक अखण्ड द्रव्य है। '. ३. धर्मास्तिकाय का प्रदेश - 'प्रदेशा निर्विभागा भागाः' - स्कन्ध के ऐसे सूक्ष्म भाग को जिसका फिर अंश न हो सके, प्रदेश कहते हैं। धर्मास्तिकाय के अविभाज्य निरंश अंश धर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं। ये भी मात्र बुद्धि से कल्पित ही है। ___४. अधर्मास्तिकाय - 'अहम्मो ठिइ लक्खणो' अर्थात् जो स्थिर परिणाम वाले जीव और पुद्गलों को स्थिति में सहायक हो उसे अधर्मास्तिकाय कहते हैं। जैसे वृक्ष की छाया पथिक के लिए ठहरने में निमित्त कारण बनती है उसी तरह जीव और पुद्गलों की स्थिति में अधर्मास्तिकाय सहायक होता है।
५. अधर्मास्तिकाय का देश - अधर्मास्तिकाय के बुद्धि कल्पित द्विप्रदेशात्मक त्रिप्रदेशात्मक आदि विभाग को अधर्मास्तिकाय का देश कहते हैं।
- ६. अधर्मास्तिकाय का प्रदेश - वस्तु से मिले हुए सबसे छोटे अंश को-जिनका फिर भाग न हो सके-प्रदेश कहते हैं। अधर्मास्तिकाय के अविभाज्य निरंश अंश, अधर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं।
७. आकाशास्तिकाय - 'अवगाहो आगासं' अर्थात् जीव और पुद्गलों को रहने के लिए जो अवकाश देवे, वह आकाश स्तिकाय है। अवगाह प्रदान करना-स्थान देना आकाश का लक्षण है। जैसे दूध शक्कर को अवगाह देता है, भींत खूटी को स्थान देती है। आकाश द्रव्य सब द्रव्यों का आधार है। अन्य सब द्रव्य इसके आधेय हैं। आकाशास्तिकाय लोकालोक व्यापी है और अनन्त प्रदेशी है।
. ८-९. आकाशास्तिकाय के देश, प्रदेश - आकाशास्तिकाय का बुद्धिकल्पित अंश आकाशास्तिकाय का देश है। आकाश द्रव्य के अविभाज्य निरंश अंश को आकाशास्तिकाय का प्रदेश कहते हैं।
१०. अद्धा-समय - अद्धा का अर्थ होता है-काल। वह समय आदि रूप होने से अद्धा-समय कहा जाता है। अथवा काल का जो सूक्ष्मतम निर्विभाग भाग है, वह अद्धा-समय है। 'वर्तना लक्षण: कालः' - अर्थात् जो वर्ते उसे काल कहते हैं। जो जीव और पुद्गलों की पर्यायों को बदलने में निमित्त हो उसे काल कहते हैं। वर्तमान का एक समय जो अढ़ाई द्वीपवर्ती जीवों और पुद्गलों के द्रव्य, प्रदेश और पर्यायों पर वर्तता है, वे सब वर्तना लक्षण रूप पर्यायें अद्धा-समय कही जाती है।
शंका - काल को अस्तिकाय क्यों नहीं माना गया है?
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