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________________ अजीवाभिगमे य ॥ ३ ॥ प्रथम प्रतिपत्ति- अजीवाभिगम का स्वरूप अजीवाभिगम का स्वरूप से किं तं अजीवाभिगमे ? अजीवाभिगमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा रूवि अजीवाभिगमे य अरूवि Jain Education International - भावार्थ - अजीवाभिगम क्या है ? अजीवाभिगम दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है १. रूपी - अजीवाभिगम और २. अरूपी - अजीवाभिगम | - विवेचन - सूत्रकार ने पहले जीवाभिगम कहा और बाद में अजीवाभिगम कहा है । 'यथोद्देशस्तथा निर्देश:' अर्थात् उद्देश के अनुसार ही निर्देशरा-कथन करना चाहिये इस न्याय से पहले जीवाभिगम के विषय में प्रश्नोत्तर किये जाने चाहिये थे परन्तु ऐसा नहीं करते हुए पहले अजीवाभिगम के विषय में प्रश्नोत्तर किये गये हैं। इसका कारण यह है कि जीवाभिगम में वक्तव्य विषय बहुत है और अजीवाभिगम में अल्प वक्तव्यता है। अतः 'सूचि कटाह' न्याय के अनुसार पहले अजीवाभिगम के विषय में प्रश्नोत्तर किये गये हैं । अजीवाभिगम दो प्रकार का कहा गया है - १. रूपी - अजीवाभिगम और २. अरूपी - अजीवाभिगम | सामान्यतया जिसमें रूप पाया जाता है उसे रूपी कहते हैं परन्तु यहां रूपी से तात्पर्य रूप, रस, गंध और स्पर्श चारों से है। अर्थात् रूप, रस, गंध स्पर्श वाले रूपी अजीव हैं और जिनमें रूप, रस, गंध और स्पर्श नहीं है वे अरूपी अजीव हैं। रूपी अनीव का ज्ञान रूपी अजीवाभिगम और अरूपी अजीव का ज्ञान अरूपी अजीवाभिगम है । से किं तं अरूवि अजीवाभिगमे ? अरूवि अजीवाभिगमे दसविहे पण्णत्ते, तं जहा - ५ - For Personal & Private Use Only पण्णवणाए जाव से त्तं अरूवि अजीवाभिगमे । भावार्थ - अरूपी अजीवाभिगम क्या है ? अरूपी अजीवाभिगम दस प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - धर्मास्तिकाय से लेकर अद्धा समय पर्यन्त जैसा कि प्रज्ञापना सूत्र के पांचवें पद में कहा गया है। यह अरूपी अर्जीवाभिगम का वर्णन हुआ। विवेचन अरूपी अजीव के दस भेद इस प्रकार हैं - १. धर्मास्तिकाय २. धर्मास्तिकाय का देश ३. धर्मास्तिकाय का प्रदेश ४. अधर्मास्तिकाय ५. अधर्मास्तिकाय का देश ६. अधर्मास्तिकाय का प्रदेश धम्मत्थिकाए एवं जहा www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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