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तृतीय प्रतिपत्ति - प्रथम नैरयिक उद्देशक - रत्नप्रभा आदि शाश्वत या अशाश्वत?
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उत्तर - हे गौतम! यह रत्नप्रभा पृथ्वी कालक्रम से सब पुद्गलों द्वारा पूर्व में परित्यक्त है परन्तु सब पुद्गलों द्वारा एक साथ पूर्व में परित्यक्त नहीं है। इसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी तक कह देना चाहिये।
विवेचन - सब पुद्गलों ने कालक्रम से रत्नप्रभा आदि रूप परिणमन का परित्याग किया है क्योंकि संसार अनादि है किंतु सब पुद्गलों ने एक साथ रत्नप्रभा आदि रूप परिणमन का त्याग नहीं किया है क्योंकि यदि वैसा माना जाय तो रत्नप्रभा आदि के स्वरूप का अभाव हो जायगा, ऐसा हो नहीं सकता क्योंकि रत्नप्रभा आदि शाश्वत है।
रत्नप्रभा आदि शाश्वत या अशाश्वत? इमा णं भंते! रयणप्पभा पुढवी किं सासया असासया? गोयमा! सिय सासया, सिय असासया। से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ-सिय सासया सिय असासया?.
गोयमा! दबट्ठयाए सासया वण्णपज्जवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहिं फासपज्जवेहि असासया, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-तं चेव जाव सिय असासया। एवं जाव अहेसत्तमा। .
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! यह रत्नप्रभा पृथ्वी शाश्वत है या अशाश्वत ? उत्तर - हे गौतम! यह रत्नप्रभा पृथ्वी कथञ्चित् शाश्वत है और कथञ्चित् अशाश्वत है।
प्रश्न - हे भगवन्! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि रत्नप्रभा पृथ्वी कथंचित् शाश्वत है, कथंचित् अशाश्वत है?
उत्तर - हे गौतम! द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा शाश्वत है और वर्ण पर्यायों से, गंध पर्यायों से, रस पर्यायों से और स्पर्श पर्यायों से अशाश्वत है। इसलिए हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि यह रत्नप्रभा पृथ्वी कथंचित् शाश्वत है और कथंचित् अशाश्वत है। इसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी तक कहना चाहिये।
_ विवेचन - अपेक्षा भेद से रत्नप्रभा आदि पृथ्वी शाश्वत भी है और अशाश्वत भी है। रत्नप्रभा पृथ्वी द्रव्य की अपेक्षा से शाश्वत है और पर्याय की अपेक्षा अशाश्वत है अर्थात् रत्नप्रभा पृथ्वी का आकार आदि भाव उसका अस्तित्व आदि सदा से था, है और रहेगा अतएव वह शाश्वत है परंतु उसके कृष्ण आदि वर्ण पर्याय, गंध आदि पर्याय, रस आदि पर्याय, स्पर्श पर्याय आदि प्रतिक्षण पलटते रहते हैं अतएव वह अशाश्वत भी है। इस प्रकार द्रव्यार्थिक नय से रलप्रभा पृथ्वी शाश्वत है और पर्यायार्थिक नय से अशाश्वत है। इसी प्रकार सातों नरक पृथ्वियों के विषय में समझना चाहिये।
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