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जीवाजीवाभिगम सूत्र
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कठिन शब्दार्थ - विजढपुव्वा - पूर्व में छोड़े हुए।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यह रत्नप्रभा पृथ्वी कालक्रम से सब जीवों के द्वारा पूर्व में छोड़ी गयी है या सब जीवों ने पूर्व में एक साथ रत्नप्रभा पृथ्वी को छोड़ा है ?
उत्तर - हे गौतम! सब जीवों ने पूर्व में कालक्रम से रत्नप्रभा पृथ्वी को छोड़ा है किंतु सभी ने एक साथ इसे नहीं छोड़ा है। इसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी तक कह देना चाहिये।
विवेचन - सब जीवों ने भूतकाल में कालक्रम से, अलग अलग समय में रत्नप्रभा आदि पृथ्वियों को छोड़ा है किंतु सब जीवों ने एक साथ उन्हें नहीं छोड़ा क्योंकि सब जीव एक साथ रत्नप्रभा आदि का त्याग कर ही नहीं सकते हैं। यदि एक साथ सब जीवों द्वारा रत्नप्रभा आदि का त्याग कर दिया गया तो रत्नप्रभा आदि में नैरयिकों का अभाव हो जायेगा किंतु ऐसा कभी होता नहीं है। ..
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए सव्वपोग्गला पविठ्ठपुव्वा सव्वपोग्गला पविट्ठा।
गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए सव्वपोग्गला पविट्ठपुव्वा, णो चेव णं सव्वपोग्गला पविट्ठा। एवं जाव अहेसत्तमाएं पुढवीए।
कठिन शब्दार्थ - पविट्ठपुव्वा - पूर्व प्रविष्ट। -
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कालक्रम से सब पुद्गल पहले प्रविष्ट हुए हैं ? अथवा एक साथ सब पुद्गल इसमें पूर्व प्रविष्ट हुए हैं ?
उत्तर - हे गौतम! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कालक्रमं से सब पुद्गल पूर्व प्रविष्ट हुए हैं परन्तु एक साथ सब पुद्गल पूर्व में प्रविष्ट नहीं हुए हैं। इसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी तक कह देना चाहिये।
विवेचन - सब पुद्गल कालक्रम से अलग अलग समय में रत्नप्रभा आदि के रूप में परिणत हुए हैं क्योंकि संसार अनादिकाल से है और उसमें ऐसा परिणमन हो सकता है परन्तु सब पुद्गल एक साथ रत्नप्रभा आदि के रूप में परिणत नहीं हो सकते। यदि सब पुद्गल रत्नप्रभा आदि रूप में परिणत हो जाय तो अन्यत्र सब जगह पुद्गलों का अभाव हो जायगा किंतु ऐसा कभी होता नहीं है। .
इमाणं भंते! रयणप्पभा पुढवी सव्वपोग्गलेहिं विजढपुव्वा? सव्वपोग्गला विजढा?
गोयमा! इमा णं रयणप्पभा पुढवी सव्वपोग्गलेहिं विजढपुव्वा णो चेव णं सव्वपोग्गलेहिं विजढा, एवं जाव अहेसत्तमा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यह रत्नप्रभा पृथ्वी सब पुद्गलों के द्वारा पूर्व में छोड़ी हुई है ? या सब पुद्गलों ने इसे एक साथ छोड़ा है ?
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