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जीवाजीवाभिगम सूत्र
इसी प्रकार आकाशान्तर तक कह देना चाहिये। शर्कराप्रभा पृथ्वी की तरह ही शेष पृथ्वियों यावत् सातवीं पृथ्वी तक की वक्तव्यता समझनी चाहिये।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सातों नरक पृथ्वियों का संस्थान कहा गया है। सातों नरक पृथ्वियां झल्लरी-झालर के जैसे गोलाकार संस्थान वाली कही गई है क्योंकि ये विस्तीर्ण वलय के आकार वाली है। सातों नरक पृथ्वियों के नीचे सर्वत्र २० हजार योजन की जाड़ाई वाली घनोदधि आई हुई है तथा उन पृथ्वियों के चारों तरफ घनोदधि से संलग्न चार योजन आदि की जाड़ाई वाले घनोदधि आदि वलय आये हुए होने से इन वलयों को भिन्न माना गया है। . ..
तनुवात की अपेक्षा आकाशान्तर की हवा पतली है अथवा तो स्वभाव से भी आकाशान्तर में कुछ अन्तर होने के कारण तनुवात से आकाशान्तर को अलग बताया गया है। आकाशान्तर शुषिर (पोलारवाला) है। लोक में सभी शुषिर स्थानों में वायुकाय तो होती ही है क्योंकि प्रज्ञापना सूत्र के दूसरे पद में लोक के बहुत असंख्याता भागों में वायुकाय का स्व स्थान बताया गया है अतः आकाशान्तर में भी तथाप्रकार की वायु तो होती ही है। . सातों पृथ्वियों की अलोक से दूरी - इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ केवइयं अबाहाए लोयंते पण्णत्ते?
गोयमा! दुवालसहिं जोयणेहिं अबाहाए लोयंते पण्णत्ते एवं दाहिणिल्लाओ पच्चथिमिल्लाओ उत्तरिल्लाओ।
सक्करप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ केवइयं अबाहाए लोयंते पण्णत्ते?
गोयमा! तिभागूणेहिं तेरसहिं जोयणेहिं अबाहाए लोयंते पण्णत्ते एवं चउहिसिं पि। वालुयप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्लाओ पुच्छा।
गोयमा! सतिभागेहिं तेरसहिं जोयणेहिं अबाहाए लोयंते पण्णत्ते एवं चउदिसिं पि, एवं सव्वासिं चउसु वि दिसासु पुच्छियव्वं।
पंकप्पभापुढवीए चोहसहिं जोयणेहिं अबाहाए लोयंते पण्णत्ते।पंचमाए तिभागूणेहिं पण्णरसहिं जोयणेहिं अबाहाए लोयंते पण्णत्ते।छट्ठीए सत्तिभागेहिं पण्णरसहिं जोयणेहिं अबाहाए लोयंते पण्णत्ते। सत्तमीए सोलसहिं जोयणेहिं अबाहाए लोयंते पण्णत्ते, एवं जाव उत्तरिल्लाओ।
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