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तृतीय प्रतिपत्ति - प्रथम नैरयिक उद्देशक - रत्नप्रभा आदि में द्रव्यों की सत्ता
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इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए रयणणामगस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स खेत्तच्छेएणं छिज्जमाणस्स तं चेव जाव हंता अस्थि, एवं जाव रिट्ठस्स। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए पंकबहुलस्स कंडस्स चउरासीइ जोयण सहस्स बाहल्लस्स खेत्तेच्छेएणं छिज्जमाणस्स तं चेव, एवं आवबहुलस्स.वि असीइ जोयणसहस्स बाहल्लस्स।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदहिस्स वीसं जोयणसहस्सबाहल्लस्स खेत्तच्छेएणं तहेव। एवं घणवायस्स असंखेज्ज जोयणसहस्सबाहल्लस्स तहेव, ओवासंतरस्स वितं चेव। __ कठिन शब्दार्थ - खेत्तच्छेएणं - क्षेत्रच्छेदेन-बुद्धि से प्रत्तरकाण्ड आदि रूप में, छिज्जमाणीए - छिद्यमानायाम्-विभक्त, अण्णमण्णबद्धाइं - अन्योन्य बद्ध-एक दूसरे से सम्बन्धित, अण्णमण्णपुट्ठाईअन्योन्य स्पृष्ट-एक दूसरे को स्पर्श किये हुए-छुए हुए, अण्णमण्णोगाढाई - एक दूसरे में अवगाढ़-: जहां एक द्रव्य रहा है वहीं देश या सर्व से दूसरे द्रव्य भी रहे हुए हैं, अण्णमण्णसिणेहपडिबद्धाई - स्नेह गुण के कारण परस्पर मिले हुए, अण्णमण्णघडत्ताए - एक दूसरे से सम्बद्ध-क्षीर नीर की तरह एक दूसरे में प्रगाढ़ रूप से मिले हुए। ... भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! एक लाख अस्सी हजार योजन मोटाई वाली और प्रतर काण्ड
आदि रूप में बुद्धि द्वारा विभक्त इस रत्नप्रभा पृथ्वी में वर्ण से काले-नीले-लाल-पीले और सफेद, गंध से सुरभिगंध वाले और दुर्गंध वाले, रस से तीखे, कडुए, कषायलै, खट्टे, मीठे तथा स्पर्श से कठोर, कोमल, भारी, हल्के, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष, संस्थान से परिमण्डल, वृत्त, त्रिकोण, चतुष्कोण और आयत रूप में परिणत द्रव्य क्या एक दूसरे से बंधे हुए, एक दूसरे से स्पृष्ट-छुए हुए, एक दूसरे में अवगाढ़, एक दूसरे से स्नेहं द्वारा प्रतिबद्ध और एक दूसरे से सम्बद्ध हैं ?
उत्तर - हाँ, गौतम! हैं।
प्रश्न - हे भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के सोलह हजार योजन की मोटाई वाले और बुद्धि द्वारा प्रतर आदि रूप में विभक्त खरकांड में वर्ण, गंध, रस, स्पर्श और संस्थान रूप में परिणत द्रव्य यावत् एक दूसरे से सम्बद्ध हैं क्या? ... उत्तर - हाँ, गौतम! हैं।
प्रश्न - हे भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के एक हजार योजन की मोटाई वाले और बुद्धि द्वारा प्रतर आदि रूप में विभक्त रत्न नामक काण्ड में पूर्वोक्त विशेषणों से विशिष्ट द्रव्य हैं क्या?
उत्तर - हाँ, गौतम! हैं। इसी प्रकार यावत् रिष्ट काण्ड तक कह देना चाहिये।
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