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... - जीवाजीवाभिगम सूत्र
रयणा सक्कर वालुयं पंका धूमा तमा य तमतमा। सत्तण्डं पुढवीणं एए गोत्ता मुणेयव्वा॥ २॥ प्रश्न - रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा आदि नाम किस कारण से दिये गये हैं ?
उत्तर - पहली नरक पृथ्वी में रत्नकाण्ड है जिससे वहां रत्नों की प्रभा पड़ती है इसलिये उसे रत्नप्रभा कहते हैं। दूसरी नरक में शर्करा अर्थात् तीखे पत्थरों के टुकड़ों की अधिकता है इसलिये उसे शर्कराप्रभा कहते हैं। तीसरी पृथ्वी में बालुका अर्थात् बालू रेत अधिक है। वह भडभुंजा की भाड से अनन्तगुणा अधिक तपती है, इसलिये उसे बालुकाप्रभा कहते हैं। चौथी पृथ्वी में रक्त मांस के कीचड की अधिकता है इसलिये उसे पंकप्रभा कहते हैं। पांचवीं पृथ्वी में धूम (धुंआ) अधिक है। वह सोमिल खार से भी अनन्तगुणा अधिक खारा है इसलिये उसे धूमप्रभा कहते हैं। छठी नारकी में तमः (अंधकार) की अधिकता है इसलिये उसे तमःप्रभा कहते हैं। सातवीं पृथ्वी में महा तमस् अर्थात् गाढ़ अंधकार है इसलिये उसे महातमः प्रभा कहते हैं। इसको तमस्तमःप्रभा भी कहते हैं जिसका अर्थ है जहां घोर अंधकार ही अंधकार है। ___ यहां पर सातों पृथ्वियों के गोत्रों के साथ आये हुए 'प्रभा' शब्द का अर्थ 'बाहुल्य' समझना चाहिये। जैसे कि जहां रत्नों की बहुलता हो वह रत्नप्रभा है। इसी प्रकार शेष पृथ्वियों के विषय में भी समझना चाहिये।
नरक पृथ्वियों का बाहल्य इमा णं भंते! रयणप्यभा पुढवी केवइया बाहल्लेणं पण्णत्ता।
गोयमा! इमा णं रयणप्पभा पुढवी असिउत्तरं जोयणसयसहस्सं बाहल्लेणं पण्णत्ता, एवं एएणं अभिलावेणं इमा गाहा अणुगंतव्वा -
असीयं बत्तीसं अट्ठावीसं तहेव वीसं च। अट्ठारस सोलसगं अछुत्तरमेव हिटिमिया॥१॥६८॥
कठिन शब्दार्थ - बाहल्लेणं - बाहल्य (मोटाई), अभिलावेणं - अभिलाप से, अणुगंतव्या - अनुसरण करना (जानना) चाहिये।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यह रत्नप्रभा पृथ्वी कितने बाहल्य वाली कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! यह रत्नप्रभा पृथ्वी एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी है। इसी प्रकार शेष पृथ्वियों की मोटाई (बाहल्य) इस गाथा से जानना चाहिये - प्रथम पृथ्वी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन की है। दूसरी की मोटाई एक लाख बत्तीस हजार योजन की है। तीसरी
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