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तृतीय प्रतिपत्ति - प्रथम नैरयिक उद्देशक - सात पृथ्वियों के नाम और गोत्र
प्रस्तुत सूत्र में सात नरकभूमियों की अपेक्षा नैरयिक जीवों के सात प्रकार कहे गये प्रथम पृथ्वी नैरयिक, द्वितीय पृथ्वी नैरयिक, तृतीय पृथ्वी नैरयिक, चतुर्थ पृथ्वी नैरयिक,
विवेचन हैं। यथा
पंचम पृथ्वी नैरयिक, षष्ठ पृथ्वी नैरयिक और सप्तम पृथ्वी नैरयिक |
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पढमा णं भंते! पुढवी किं णामा किं गोत्ता पण्णत्ता ? गोयमा ! णामेणं घम्मा गोत्तेणं रयणप्पभा ।
सात पृथ्वियों के नाम और गोत्र
दोच्चा णं भंते! पुढवी किं णामा किं गोत्ता पण्णत्ता ?
गोयमा ! णामेणं वंसा गोत्तेणं सक्करप्पभा, एवं एएणं अभिलावेणं सव्वासिं पुच्छा, णामाणि इमाणि सेला तच्चा अंजणा चउत्थी रिट्ठा पंचमी मघा छट्ठी माघवई सत्तमा जाव तमतमा गोत्तेणं पण्णत्ता ॥ ६७॥
कठिन शब्दार्थ - णामा नाम, गोत्ता- गोत्र ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! प्रथम पृथ्वी का नाम और गोत्र क्या कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! प्रथम पृथ्वी का नाम 'घम्मा' और उसका गोत्र 'रत्नप्रभा' है । प्रश्न - हे भगवन् ! द्वितीय पृथ्वी का नाम और गोत्र क्या कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! द्वितीय पृथ्वी का नाम 'वंशा' और गोत्र 'शर्करा प्रभा' है। इसी प्रकार सभी पृथ्वियों के संबंध में पृच्छा करनी चाहिये । उनके नाम इस प्रकार हैं- तीसरी शैला, चौथी अंजना, पांचवीं रिष्ठा, छठी मघा और सातवीं माघवती । इनके गोत्र क्रमशः इस प्रकार कहे गये हैं - तीसरी पृथ्वी का गोत्र बालुकाप्रभा, चौथी पृथ्वी का पंकप्रभा, पांचवीं पृथ्वी का धूमप्रभा, छठी पृथ्वी का तमः प्रभा और सातवीं पृथ्वी का गोत्र तमस्तमः प्रभा है ।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में सात पृथ्वियों के नाम और गोत्र कहे गये हैं।
शंका- नाम और गोत्र में क्या अंतर है ?
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समाधान - नाम में उसके अनुरूप गुण होना आवश्यक नहीं है जबकि गोत्र गुण प्रधान होता है तथा नाम अनादिकाल सिद्ध होता है और अन्वर्थ रहित होता है। नाम की अपेक्षा गोत्र की प्रधानता है । किन्हीं किन्हीं प्रतियों में इन सात पृथ्वियों के नाम और गोत्र को बतलाने वाली दो संग्रहणी गाथाएं इस प्रकार दी गई हैं
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घम्मा वसा सेला अंजण रिट्ठा मघा या माघवती
सत्तण्हं पुढवीणं एए नामा उ नायव्वा ॥ १ ॥
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