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________________ १७४ - जीवाजीवाभिगम सूत्र गोयमा! सव्वत्थोवा अहेसत्तम पुढविणेरइय णपुंसगा छटुं पुढवि.णेरड्य णपुंसगां असंखेन्जगुणा जाव दोच्चपुढवि णेरइय णपुंसगा असंखेज्जगुणा अंतरदीवगमणुस्स णपुंसगा असंखेजगुणा देवकुरु उत्तरकुरू अकम्मभूमगमणुस्स णपुंसगा दो वि संखेज्जगुणा जाव पुव्वविदेह अवरविदेह कम्मभूमग मणुस्स णपुंसगा दो वि संखेज्जगुणा रयणप्पभा पुढवि णेरइय णपुंसगा असंखेज्जगुणा खहयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगा असंखेज्जगुणा, थलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगा संखिज्जगुणा, जलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगा संखिज्जगुणा, चउरिदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगा विसेसाहिया, तेइंदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगा विसेसाहिया, बेइंदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगा विसेसाहिया, तेउक्काइय एगिदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगा असंखेज्जगुणा, पुढविकाइय एगिंदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगा विसेसाहिया, आउक्काइय एगिंदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगा विसेसाहिया, वाउक्काइय एगिदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगा विसेसाहिया, वणस्सइकाइय एगिदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगा अणंतगुणा॥६०॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन नैरयिक नपुंसक-रत्नप्रभा पृथ्वी नैरयिक नपुंसक यावत् अधः सप्तम पृथ्वी नैरयिक नपुंसकों में, तिर्यंच योनिक नपुंसकों में-एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसकों, पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसकों यावत् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसकों में, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक नपुंसकों में, जलचरों में, स्थलचरों में, खेचरों में, मनुष्य नपुंसकों में-कर्मभूमिज मनुष्य नपुंसकों में, अकर्मभूमिज मनुष्य नपुंसकों में और अंतरद्वीपज मनुष्य नपुंसकों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े अधःसप्तम पृथ्वी नैरयिक नपुंसक, उनसे छठी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुणा उनसे यावत् दूसरी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुणा, उनसे अन्तरद्वीपज मनुष्य नपुंसक असंख्यातगुणा, उनसे देवकुरु उत्तरकुरु अकर्मभूमिज मनुष्य नपुंसक दोनों संख्यातगुणा उनसे यावत् पूर्वविदेह पश्चिमविदेह कर्मभूमिज मनुष्य नपुंसक दोनों संख्यातगुणा, उनसे रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुणा, उनसे खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक असंख्यातगुणा, उनसे स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक संख्यातगुणा, उनसे जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक संख्यातगुणा, उनसे चउरिन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक विशेषाधिक, उनसे तेइन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक विशेषाधिक, उनसे बेइन्द्रिय तियंच नपुंसक विशेषाधिक, उनसे तेजस्कायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक असंख्यातगुणा, उनसे पृथ्वीकायिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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