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जीवाजीवाभिगम सूत्र
तिरिक्खजोणियपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा- जलयरा थलयरा खहयरा, इत्थि भेदो भाणियव्वो जाव खहयरा, से त्तं खहयरा से तं तिरिक्खजोणियपुरिसा ॥ भावार्थ - तिर्यंचयोनिक पुरुष कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
तिर्यंचयोनिक पुरुष तीन प्रकार कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं- जलचर, स्थलचर और खेचर । जिस प्रकार स्त्री के भेद कहे गये हैं उसी प्रकार खेचर तक समझना चाहिये। यह खेचर का वर्णन हुआ। इस प्रकार तिर्यंचयोनिक पुरुष का वर्णन हुआ।
से किं तं मणुस्स पुरिसा ?
मणुस्स पुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा- कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवंगा, सेत्तं मणुस्स पुरिसा ॥
भावार्थ - मनुष्य कितने प्रकार के कहे गये हैं?
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मनुष्य तीन प्रकार के कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं - कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक और अंतरद्वीपिक । यह मनुष्यों का वर्णन हुआ।
से किं तं देवपुरिसा ?
देवपुरिसा चउव्विहा पण्णत्ता, इत्थीभेओ भाणियव्वो जाव सव्र्वट्ठसिद्धा ॥ ५२ ॥ भावार्थ - देव पुरुष कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
देवपुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं । जिस प्रकार स्त्री अधिकार में भेद कहे गये हैं उसी प्रकार यावत् सर्वार्थसिद्ध तक देवों के भेद कहने चाहिये ।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में स्त्री की तरह पुरुषों के भेद कहे गये हैं ।
तिर्यंचपुरुष के तीन भेद हैं - १. जलचर २. स्थलचर और ३. खेचर । मनुष्य पुरुष के तीन भेद
हैं १. कर्मभूमिज २. अकर्मभूमिज और ३. अंतरद्वीपज । देवपुरुष के चार भेद हैं - १. भवनवासी २. वाणव्यतंर ३. ज्योतिषी और ४. वैमानिक । भवनवासी देवों के असुरकुमार आदि दस भेद हैं। वाणव्यंतर देवों के पिशाच आदि आठ भेद हैं। ज्योतिषी देवों के चन्द्र आदि पांच भेद हैं। वैमानिक देवों के दो भेद हैं - १. कल्पोपपन्न और २. कल्पातीत । कल्पोपपन्न के सौधर्म देवलोक आदि बारह भेद हैं और कल्पातीत देवों के दो भेद हैं- नवग्रैवेयक और अनुत्तर विमान । नवग्रैवेयक के नौ भेद हैं। अनुत्तरविमान के पांच भेद हैं - १. विजय २. वैजयंत ३. जयंत ४. अपराजित और ५. सर्वार्थसिद्ध ।
पुरुष वेद की स्थिति
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पुरिसस्स णं भंते! केवड्यं कालठिई पण्णत्ता ?
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