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________________ ११६ जीवाजीवाभिगम सूत्र . २. दूसरी अपेक्षा से स्त्रियों की भवस्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट नौ पल्योपम की कही गई है। जघन्य स्थिति पूर्ववत् तिर्यंच स्त्री और मनुष्य स्त्री की अपेक्षा और उत्कृष्ट स्थिति ईशानकल्प की परिगृहीता देवी की अपेक्षा समझना चाहिये। ३. तीसरी अपेक्षा से स्त्रियों की भवस्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सात पल्योपम की कही गई है। उत्कृष्ट स्थिति सौधर्म कल्प की परिगृहीता देवी की अपेक्षा समझनी चाहिये। ४. चौथी अपेक्षा से स्त्रियों की भवस्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पचास पल्योपम की कही गई है। यह उत्कृष्ट स्थिति सौधर्म कल्प की अपरिगृहीता देवी की अपेक्षा से है। . तिर्यंच योनिक स्त्रियों की स्थिति तिरिक्खजोणित्थीणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई। जलयरतिरिक्खजोणित्थीणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी। चउप्पयथलयर तिरिक्खजोणित्थीणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? ... गोयमा! जहा तिरिक्खजोणित्थीओ। उरपरिसप्पथलयर तिरिक्खजोणित्थीणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी। एवं भुयपरिसप्प थलयर तिरिक्खजोणित्थीणं। एवं खहयर तिरिक्खजोणित्थीणं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागो॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! तिर्यंचयोनिक स्त्रियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! तिर्यंच स्त्री की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की • कही गई है। . प्रश्न - हे भगवन्! जलचर तिर्यंच स्त्री की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! जलचरी की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्व कोटि की कही गई है। - प्रश्न - हे भगवन्! चतुष्पद स्थलचर तिर्यंचयोनिक स्त्री की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! जैसे औधिक (सामान्य) तिर्यंच स्त्रियों की स्थिति कही है उसी प्रकार चतुष्पद स्थलचरं तिर्यंच स्त्री की स्थिति समझनी चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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