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दोच्चा तिविहापडिवत्ती त्रिविधाख्या द्वितीय प्रतिपत्ति
. प्रथम प्रतिपत्ति में दो प्रकार के संसारी जीवों का प्रतिपादन करने के बाद आगमकार इस दूसरी त्रिविधा नामक प्रतिपत्ति में तीन प्रकार के संसारी जीवों का प्रतिपादन करते हैं। जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार हैं -
तीन प्रकार के संसारी जीव तत्थ जे ते एवमाहंसु तिविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु तंजहा - इत्थी पुरिसा णपुंसगा॥४४॥
कठिन शब्दार्थ - एवं - इस प्रकार, आहंसु - कहते हैं, तिविहा - त्रिविधा-तीन प्रकार के।
भावार्थ - नौ प्रतिपत्तियों में जो संसारी जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं - स्त्री, पुरुष और नपुंसक। . विवेचन - अपेक्षा भेद से संसार समापनक जीवों की नौ प्रतिपत्तियाँ कही गई हैं। उनमें से पहली प्रतिपत्ति में त्रसं और स्थावर, इन दो प्रकार के जीवों का निरूपण २३ द्वारों के द्वारा किया गया है। अब इस दूसरी प्रतिपत्ति में स्त्री, पुरुष और नपुंसक के भेद से तीन प्रकार के संसारी जीवों का प्रतिपादन किया जाता है। संसारी जीवों के ये तीन भेद वेद की अपेक्षा कहे गये हैं। ... नोकषाय मोहनीय कर्म के उदय से रमण की अभिलाषा 'वेद' कहलाती है। जिस कर्म के उदय से पुरुष के साथ रमण करने की इच्छा हो, उसे स्त्रीवेद कहते हैं। जिस कर्म के उदय से स्त्री के साथ रमण करने की इच्छा हो, उसे पुरुष वेद कहते हैं। जिस कर्म के उदय से स्त्री और पुरुष दोनों के साथ रमण करने की अभिलाषा हो, उसे नपुंसक वेद कहते हैं। ___एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय तथा नैरयिक जीव नपुंसक वेदी होते हैं। गर्भज तिर्यंचों और गर्भज मनुष्यों में तीनों वेद पाते हैं। देवों में दो वेद पाते हैं-स्त्री वेद और पुरुष वेद, वे नपुंसक वेदी नहीं होते हैं।
स्त्रियों के भेद-प्रभेद से किं तं इत्थीओ?
इत्थीओ तिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - तिरिक्खजोणिणित्थीओ, मणुस्सित्थिओ, देवित्थीओ।
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