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जीवाजीवाभिगम सूत्र
जाव अवेयावि, पंच पज्जत्ती, तिविहावि दिट्ठी, चत्तारि दंसणा णाणी वि अण्णाणी वि, जे गाणी ते अत्थेगइया दुणाणी अत्थेगइया तिणाणी अत्थेगड्या चउणाणी अत्थेगइया एगणाणी, जे दुण्णाणी ते णियमा आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी य, जे तिणाणी ते आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी ओहिणाणी य, अहवा आभिणिबोहियाणी सुयणाणी मणपज्जवणाणी य, जे चडणाणी ते णियमा आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी ओहिणाणी मणपज्जवणाणी य जे एगणाणी ते णियमा केवलणाणी, एवं अण्णाणी वि दुअण्णाणी तिअण्णाणी, मणजोगी वि वड्कायजोगी वि अजोगी वि, दुविह उवओगे आहारो छद्दिसि उववाओ णेरइएहिं अहेसत्तमवज्जेहिं तिरिक्खजोणिएहिंतो, उववाओ असंखिज्जवासाउयवज्जेहिं मणुएहिं अकम्पभूमग अंतरदीवग असंखेज्जवासाउयवज्जेहिं देवेहिं सव्वेहिं, ठिई जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिणि पलिओवमाई, दुविहा वि मरंति, उव्वट्टित्ता णेरड्याइसु जाव अणुत्तरोववाइएसु, अत्थेगइया सिज्झति जाव अंतं करेंति ।
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णं भंते! जीवा कइगइया कइआगइया पण्णत्ता ?
गोयमा! पंचगइया चउआगइया परित्ता संखिज्जा पण्णत्ता, से तं मणुस्सा ॥ ४१ ॥
भावार्थ प्रश्न हे भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ?
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उत्तर - हे गौतम! उन जीवों (मनुष्यों) के पांच शरीर कहे गये हैं- औदारिक यावत् कार्मण । उनके शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट तीन कोस की है। उनके छह संहनन और छह संस्थान होते हैं ।
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प्रश्न- हे भगवन् ! वे जीव क्या क्रोध कषायी यावत् लोभकषायी अथवा अकषायी होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! वे सभी तरह के हैं ।
प्रश्न- हे भगवन् ! वे जीव क्या आहारसंज्ञा वाले यावत् नो-संज्ञा वाले होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! वे सब तरह के हैं ।
प्रश्न- हे भगवन् ! वे जीव कृष्णलेश्या वाले यावत् अलेशी होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! वे सब तरह के हैं।
वे श्रोत्रेन्द्रिय उपयोग वाले यावत् नोइन्द्रिय उपयोग वाले हैं। उनमें सभी समुद्घात पाये जाते हैं । यथा - वेदना समुद्घात यावत् केवली समुद्घात । वे संज्ञी भी हैं और नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी भी हैं। वे स्त्रीवेद वाले भी हैं यावत् अवेदी भी हैं। उनमें पांच पर्याप्तियाँ पाती हैं। तीनों दृष्टियाँ और चार दर्शन
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