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जीवाजीवाभिगम सूत्र
गर्भ व्युत्क्रान्तिक पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक तीन प्रकार के कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - जलचर, स्थलचर, खेचर।
विवेचन - जो जीव गर्भ में उत्पन्न होते हैं, वे माता पिता के संयोग से उत्पन्न होने वाले गर्भव्युत्क्रांतिक (गर्भज) कहलाते हैं। जो तिर्यंच गति में जन्म लेते हैं उन्हें तिर्यंच कहते हैं। गति की अपेक्षा वे तिर्यंच गति के जीव हैं और उत्पत्ति की अपेक्षा वे तिर्यंचयोनिक कहलाते हैं। टीकाकार ने तिर्यंच शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की है। संस्कृत में "अञ्चु गति पूजनयोः" धातु है। उससे तिर्यंच शब्द बनता है। "तिरः वनं अञ्चति गच्छति इति तिर्यक् बहुवचने तिर्यञ्चः" शब्दार्थ यह है कि जो टेड़े मेड़े चलते हैं वे तिर्यंच कहलाते हैं। यह केवल शब्दार्थ मात्र है। रूढ अर्थ ऊपर बतला दिया है कि जो तिर्यंच गति में जन्म लेते हैं वे तिर्यंच कहलाते हैं।
जलचर जीवों का वर्णन से किं तं जलयरा?
जलयरा पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा - मच्छा कच्छभा मगरा गाहा संसुमारा सव्वेसिं भेदो भाणियव्वो तहेव जहा पण्णवणाए जाव जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्ता य अपज्जत्ता य।
भावार्थ - जलचर कितने प्रकार के कहे गये हैं?
जलचर पांच प्रकार के कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - मत्स्य, कच्छप, ग्राह और सुंसुमार। गर्भज जलचर के सभी भेद प्रज्ञापना सूत्र के अनुसार समझने चाहिये यावत् ये और इसी प्रकार के अन्य जलचर जीव संक्षेप से दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - पर्याप्तक और अपर्याप्तक।
विवेचन - गर्भज जलचर भी सम्मूर्छिम जलचर की तरह पांच प्रकार के कहे गये हैं। सभी भेद-प्रभेद प्रज्ञापना सूत्र के अनुसार समझने चाहिये।
तेसि णं भंते! जीवाणं कइ सरीरगा पण्णत्ता?
गोयमा! चत्तारि सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा - ओरालिए, वेउव्विए, तेयए, कम्मए, सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं जोयणसहस्सं छव्विह संघयणी पण्णत्ता, तं जहा - वइरोसभणाराय संघयणी, उसभणारायसंघयणी णारायसंघयणी, अद्धणारायसंघयणी, कीलिया संघयणी, सेवट्ट संघयणी, छव्विहा संठिया पण्णत्ता, तं जहा - समचउरंस संठिया, णग्गोह परिमंडल संठिया, सादि संठिया, वामण संठिया, खुज्ज संठिया, हुंड संठिया।
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