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प्रथम प्रतिपत्ति - गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों का वर्णन
णाणत्तं सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जभागं उक्कोसेणं धणुपुहुत्तं ठिई उक्कोसेणां बावत्तरि वाससहस्साई सेसं जहा जलयराणं जाव चउगइया दुआगइया परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता, से तं खहयर संमुच्छिम तिरिक्खजोणिया, से तं सम्मुच्छिम पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया॥३६॥
भावार्थ - समुद्गक पक्षी कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
समुद्गक पक्षी एक ही प्रकार के हैं। जिस प्रकार प्रज्ञापना सूत्र में कहा है उसी प्रकार समझना चाहिये। इसी तरह वितत पक्षी भी प्रज्ञापना सूत्र के अनुसार समझना चाहिये। ये दो प्रकार के कहे गये हैं - पर्याप्तक और अपर्याप्तक, इत्यादि पूर्ववत् कथन करना चाहिये। विशेषता यह है कि इनके शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट धनुष पृथुत्व है। स्थिति उत्कृष्ट बहत्तर हजार वर्ष की है। शेष सारा वर्णन जलचर जीवों के समान समझना चाहिये यावत् ये चार गतियों में जाने वाले दो गतियों से आने वाले. प्रत्येक शरीरी और असंख्यात हैं। यह खेचर सम्मूर्च्छिम तिर्यंचयोनिकों का वर्णन हुआ। इस प्रकार सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों का निरूपण हुआ।
: विवेचन - समुद्गक पक्षी एक ही आकार प्रकार के कहे गये हैं वे यहां (मनुष्य क्षेत्र में) नहीं होते, बाहर के द्वीप समुद्रों में होते हैं। वितत पक्षी भी एक ही आकार प्रकार के होते हैं। वे भी मनुष्य क्षेत्र में नहीं होते। मनुष्य क्षेत्र से बाहर के द्वीप समुद्रों में होते हैं। ये खेचर जीव दो प्रकार के कहे गये हैं - पर्याप्तक और अपर्याप्तक। खेचर सम्मूर्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों के शरीर आदि २३ द्वारों का कथन जलचरों की तरह ही समझना चाहिये किंतु निम्न दो द्वारों में अंतर हैं -
१. अवगाहना द्वार - इन जीवों के शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और - उत्कृष्ट धनुष पृथुत्वं की होती है।
। २. सिनति द्वार - इन जीवों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट बहत्तर हजार वर्ष की है। - शेष सारा वर्णन जलचरों के समान है। इस प्रकार सम्मूर्च्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रियों का वर्णन पूरा हुआ।
गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों का वर्णन से किं तं गब्भवक्कंतिय पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया?
गब्भवक्कंतिय पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - जलयरा थलयरा खहयरा॥३७॥
भावार्थ - गर्भ व्युत्क्रान्तिक पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
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