________________
[6]
आगम में बुद्धि की सार्थकता इसी में बताई है कि वह अपनी बुद्धि को आत्म-तत्त्व की विचारणा में लगाये - "बुद्धे फलं तत्त्वविचारणा"। आज का व्यापारी वर्ग भी अभयकुमार की बुद्धि को याद करता है। नूतन वर्ष के अवसर पर अपने बही खातों में अभयकुमार की बुद्धि प्राप्त करने की कामना करता है।
सूत्र के तीसरे वर्ग में दस महापुरुषों का वर्णन हैं। इनमें मुख्य एवं विस्तृत वर्णन तो एक मात्र काकंदी नगरी के धन्यकुमार का है। इतना ही नहीं यदि यह भी कह दिया जाय कि सम्पूर्ण अनुत्तरोपपातिक सूत्र में जिन तेतीस महापुरुषों का अधिकार है, उनमें धन्यकुमार का जितना सजीव चित्रण किया गया उतना अन्य किसी साधक का नहीं तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। वैसे तो भगवान् महावीर प्रभु स्वयं ने तथा उनके अन्तेवासी अनेक श्रमण श्रमणियों ने उत्कृष्ट तप की आराधना की, जिनका वर्णन आचारांग, अन्तगडदशा, भगवती आदि सूत्रों में मिलता है पर जिस विशिष्ट तप की आराधना धन्य अनागार ने की उसकी सानी का उदाहरण
आगम में अन्यत्र नहीं मिलता। इसी कारण स्वयं वीरप्रभु ने अपने श्रीमुख से उनके तप की प्रशंसा की है। आगम में “तवे सूरा अणगारा" अर्थात् अनगारों को तप में शूर कहा है, जो धन्य अनगार के लिए पूर्ण चरितार्थ होता है।
धन्यकुमार, काकन्दी नगरी की भद्रा सार्थवाही का पुत्र था, जो अत्यधिक धन्य धान्य एवं शील सदाचार आदि गुणों से सम्पन्न था। उनकी सम्पन्नता के लिए शब्द आया है 'इन्भ' जिसका अर्थ होता है हाथी यानी जिसके हस्ति परिमित धन होता वह 'इन्भ सेठ' कहलाता था। साथ ही उनके लिए दूसरा शब्द आया है 'सार्थवाही' अर्थात् माल को क्रय-विक्रय हेतु जन समूह को साथ लेकर वाहनों द्वारा एक देश से दूसरे देश में गमन करने वाली थी। इससे यह भी ध्वनित होता है कि उस समय में पुरुषों के साथ-साथ स्त्री जाति की भी प्रधानता थी। उनका क्षेत्र मात्र घर की चार दिवारी तक ही सीमित नहीं था बल्कि व्यापार वाणिज्य के निमित्त से देश-देशान्तरों तक भी उनका आगमन होता था।
धन्यकुमार का जन्म भद्रा सार्थवाही के अत्यन्त सम्पन्न कुल में हुआ। अतएव उनका पांच धायमाताओं के द्वारा लालन पालन हुआ। यथायोग्य अध्ययन के पश्चात् जब उसने युवावस्था में प्रवेश किया तो उनका विवाह उत्तम इभ्य श्रेष्ठियों की बत्तीस कन्याओं के साथ एक ही दिन में सम्पन्न हुआ। प्रत्येक कन्या के माता-पिता द्वारा धन्यकुमार को खूब रत्न, आभूषण, वस्त्र,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org