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________________ ५२ अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र होने लगता था। कहने का आशय यह है कि जिस प्रकार स्कंदक का शरीर तप के कारण क्षीण हो गया था उसी प्रकार धन्य अनगार का शरीर भी क्षीण हो गया था। शरीर क्षीण होने पर भी उनकी आत्मिक-दीप्ति बढ़ रही थी और वे इस प्रकार दिखाई देते थे जैसे राख से आच्छादित अग्नि हो। उनकी आत्मा तप से, तेज से और इनसे उत्पन्न कांति से अलौकिक सुंदरता धारण किए हुए थी। अब सूत्रकार धन्य अनगार की अन्य अनगारों में प्रधानता दिखाते हुए कहते हैं - धन्य अनगार की श्रेष्ठता तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसीलए चेइए, सेणिए राया। भावार्थ - उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था। उसके बाहर ईशान कोण में गुणशील नामक चैत्य था। उस नगर में श्रेणिक नाम का राजा था। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे, परिसा णिग्गया, सेणिए णिग्गए, धम्मकहा, परिसा पडिगया। भावार्थ - उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में पधारे। उन्हें वंदना करने के लिए नगर से परिषद् निकली। श्रेणिक राजा भी वंदना करने के लिए नगर निकला। भगवान् ने धर्मोपदेश दिया। उपदेश सुन कर परिषद् लौट गई। श्रेणिक का प्रश्न __तए णं से सेणिए राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासीइमेसि णं भंते! इंदभूइपामोक्खाणं चोइसण्हं समणसाहस्सीणं कयरे अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिजरतराए चेव? कठिन शब्दार्थ - धम्म - धर्म को, सोच्चा - सुन कर, णिसम्म - मनन कर, इंदभूइपामोक्खाणं - इन्द्रभूति प्रमुख, चोइसण्हं - चौदह, समणसाहस्सीणं - हजार श्रमणों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004192
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages86
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuttaropapatikdasha
File Size12 MB
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