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अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र
कठिन शब्दार्थ - सत्थवाही - सार्थवाही, परिवसइ - रहती थी, अपरिभूया - अपरिभूता-पराभव नहीं पाने वाली।
भावार्थ - उस काकंदी नगरी में भद्रा नाम की सार्थवाही निवास करती थी। वह ऋद्धि संपन्न यावत् किसी से पराभव नहीं पाने वाली थी। ___विवेचन - प्रस्ततु सूत्र में प्रयुक्त सत्थवाही - सार्थवाही शब्द का अर्थ इस प्रकार है - 'सार्थं वाहयति या सा सार्थवाही' अर्थात् जो गणिम, धरिम, मेय आदि विक्रेय पदार्थों को लेकर विशेष लाभ के लिये दूसरे देश को जाती हो तथा सार्थ - साथ में चलने वाले जन समूह के योग, क्षेम की चिन्ता करती हो उसे सार्थवाही कहते हैं।
गणिम - उन विक्रेय वस्तुओं को कहते हैं जो एक, दो, तीन आदि संख्या क्रम से गिन कर दी जाती हों। जैसे - नारियल, सुपारी आदि।
धरिम - उन विक्रेय वस्तुओं को कहते हैं जो तराजू द्वारा तोल कर दी जाती हों। जैसे - गेहूं, जौ, शक्कर आदि।
मेय - उन विक्रेय पदार्थों को कहते हैं जो किसी माप विशेष के द्वारा माप कर दिये जाते हों। जैसे - दूध, तेल, वस्त्र आदि।
परिच्छेद्य - उन विक्रेय पदार्थों को कहते हैं जो प्रत्यक्ष रूप से कसौटी अथवा अन्य उपायों से परीक्षा करके दिये-लिये जाते हों जैसे - माणिक, मोती, सोना आदि। भद्रा सार्थवाही के लिये प्रयुक्त “अड्डा जाव अपरिभूया" विशेषणों में 'जाव' शब्द से निम्न पाठ संगृहीत किया गया है - “अड्डा दित्ता वित्थिण्णविउल भवणसयणासणजाणवाहणाइण्णा बहुधण बहुजायरूवरयया आओगपओग संपउत्ता विच्छड्डिय विउल भत्तपाणा बहुदासीदास गोमहिसग-वेलयप्पभूया बहुजणस्स अपरिभूया।" ___ अर्थात् - वह भद्रा सार्थवाही अत्यधिक धनधान्य सम्पन्न, शील सदाचार रूपी गुणों से प्रकाशित तथा अपने गौरव से युक्त थी। उसके विस्तृत अनेक भवन, पलंग, शय्या, सिंहासन चौकी आदि, यान - गाड़ी रथ आदि और वाहन - घोड़ा हाथी आदि थे। उसके बहुत धन तथा बहुत सोना चांदी था। उसने अपना धन द्विगुणित लाभ-व्यापार आदि में लगा रखा था। उसके यहां सबके भोजन कर लेने के बाद बहुत-सा भक्त पान आदि अवशिष्ट रहता था जो गरीबों को दिया जाता था। उसके आज्ञाकारी बहुत दास-दासी आदि थे और बहुत से जातिवंत गाय, बैल, भैंस आदि थे। वह उस नगर में अत्यंत प्रतिष्ठित एवं सम्माननीय थी।
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