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तृतीय वर्ग - प्रथम अध्ययन
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भावार्थ - हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिक दशा के तीसरे वर्ग के दस अध्ययन प्रतिपादित किये हैं वे इस प्रकार हैं -
१. धन्य २. सुनक्षत्र ३. ऋषिदास ४. पेल्लक ५. रामपुत्र ६. चन्द्र ७. पृष्ठ ८. पेढालपुत्र अनगार ह. पोट्टिल और १०. वेहल्ल।
इन दस कुमारों के नाम के दस अध्ययन कहे हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में भगवान् महावीर स्वामी द्वारा अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र के तृतीय वर्ग में वर्णित दस अध्ययनों का नामोल्लेख किया गया है। अब जम्बूस्वामी तृतीय वर्ग के प्रथम अध्ययन के अर्थ के विषय में सुधर्मा स्वामी से प्रश्न करते हैं -
जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं
के अटे पण्णत्ते? . भावार्थ - हे भगवन्! यदि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिक दशा के तृतीय वर्ग के दस अध्ययन कहे हैं तो हे भगवन्! प्रथम अध्ययन का श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने क्या अर्थ फरमाया है?
धन्यकुमार नामक प्रथम अध्ययन
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं काकंदी णामं णयरी होत्था रिद्धत्थिमियसमिद्धा, सहसंबवणे उजाणे सव्वोउयपुप्फफलसमिद्धे जाव पासाइए, जियसत्तू राया।
कठिन शब्दार्थ - सव्वोउयपुप्फफल समिद्धे - सब ऋतुओं के पुष्प और फलों से युक्त।
भावार्थ - हे जम्बू! उस काल और उस समय में काकंदी नाम की नगरी थी। वह ऋद्धि सम्पन्न, स्वचक्री-परचक्री के भय से रहित और समृद्धिशाली थी। उस नगरी के बाहर सहस्राम्रवन नामक उद्यान था। वह सब ऋतुओं के पुष्प एवं फल वाले वृक्षों से शोभित था। उस नगरी में जितशत्रु नामक राजा राज्य करता था।
तत्थ णं काकंदीए णयरीए भद्दा णामं सत्थवाही परिवसइ अड्डा जाव अपरिभूया।
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