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________________ १० अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र ****************************************************** * दियहाणुक्कुडुए सूराभिमुहे, आयावणभूमीए, आयावेमाणे रत्तिं वीरासणेणं अवाउडेण य। भावार्थ - तेरहवें मास में तेरह-तरह का तप करना। चउदसमं मासं तीसइ तीसइमेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दियद्वाणुक्कुडुए सूराभिमुहे आयावणभूमीए, आयावेमाणे रत्तिं वीरासणेणं अवाउडेण य। . भावार्थ - चौदहवें मास में चौदह-चौदह का तप करना। पण्णरसमं मासं बत्तीसइमं बत्तीसइमेणं अणिविखत्तेणं तवोकम्मेणं दियद्वाणुक्कुडुए सूराभिमुहे, आयावणभूमीए, आयावेमाणे रत्तिं वीरासणेणं अवाउडेण य। .भावार्थ - पन्द्रहवें मास में पन्द्रह-पन्द्रह का तप करना। सोलसमं मासं चोत्तीसइमं चोत्तीसइमेणं अणिविखत्तेणं तवोकम्मेणं दियहाणुक्कुडुए सूराभिमुहे, आयावणभूमीए, आयावेमाणे रत्तिं वीरासणेणं अवाउडेण या भावार्थ - सोलहवें मास में सोलह-सोलह का तप करना। 'गुणरयणसंवच्छर' इस शब्द की संस्कृत छाया दो तरह से बनती है - गुणरचनसंवत्सर, अथवा गुणरत्नसंवत्सर, इनका अर्थ क्रमशः इस प्रकार किया गया है - 'गुणानां निर्जराविशेषाणां रचनं संवत्सरेण सत्रिभागवर्षेण यस्मिंतपसि तद गुणरचनं संवत्सरम्।' 'गुणा एव वा रत्नानि यत्र स तथा गुणरत्नः, गुणरत्नः संवत्सरो यत्र तद् गुणरत्न संवत्सरं तपः।' ____ अर्थात् - जिस तेप को करने में सोलह मास तक एक ही प्रकार की निर्जरा रूप गुणों की रचना-उत्पत्ति हो, वह तप 'गुणरयण संवच्छर' - गुणरचन संवत्सर कहलाता है। अथवा - जिस तप में गुण रूप रत्नों वाला सम्पूर्ण वर्ष बिताया जाय, वह तप 'गुणरत्न संवत्सर' तप कहलाता है। इस तप में सोलह महीने लगते हैं। जिसमें से ४०७ दिन तपस्या के और ७३ दिन पारणे के होते हैं। यथा - पण्णरस वीस चउव्वीस चेव चउव्वीस पण्णवीसा य। चउव्वीस एक्कवीसा, चउवीसा सत्तवीसा य|॥१॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004192
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages86
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuttaropapatikdasha
File Size12 MB
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