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________________ ७० पुष्पिका सूत्र देवों को बुलाया यावत् उन्हें सुरेन्द्रों के अभिगमन करने योग्य कार्य करने की आज्ञा दी यावत् उन देवों ने सुरेन्द्रों के अभिगमन करने योग्य कार्य करके आज्ञा वापिस लौटाई अर्थात् सूचित किया। सुस्वरा घंटा को बजा कर यावत् सूर्याभदेव के समान नाट्यविधि आदि प्रदर्शित करने की विकुर्वणा की। किन्तु सूर्याभदेव के वर्णन से इतनी विशेषता है कि इसका यान विमान एक हजार योजन विस्तीर्ण (लंबा चौड़ा) व साढे बासठ योजन ऊंचा था। महेन्द्र ध्वज की ऊंचाई पच्चीस योजन की थी। इसके अलावा शेष सारा वर्णन सूर्याभ देव के समान समझना चाहिये यावत् जिस प्रकार सूर्याभदेव भगवान् की सेवा में आया, नाट्यविधि प्रदर्शित की और वापिस लौट गया। उसी प्रकार चन्द्रदेव के विषय में भी समझ लेना चाहिए। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में चन्द्रदेव के भगवान् के समवसरण में जाने का वर्णन है। ... किसी समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी राजगृही नगरी में पधारे। सामान्य मानवों के समान ही देवगण भी अपनी ऋद्धि समृद्धि के साथ प्रभु के दर्शनार्थ आये। जब ज्योतिष्कदेव चन्द्र अपने विमान में बैठ कर अवधिज्ञान के द्वारा संपूर्ण जंबूद्वीप को देख रहा था तभी उसने देखा कि परम पावन श्रमण शिरोमणि भगवान् महावीर स्वामी राजगृह में विराज रहे हैं। चन्द्रदेव को भी भगवान् के समवसरण में जाने की भावना हुई। उसने अपने आभियोगिक देवों को बुलाकर दर्शन के लिए जाने की सर्व तैयारी करने का आदेश दिया। जिस प्रकार राजप्रश्नीय सूत्र में सूर्याभ देव का भगवान् के दर्शनार्थ जाने, नाट्य विधि दिखाने आदि का वर्णन दिया गया है उसी प्रकार सम्पूर्ण वर्णन चन्द्र देव के विषय में भी समझ लेना चाहिए। जिस प्रकार सूर्याभदेव ३२ प्रकार के नाटक दिखा कर स्वस्थान जाता है ठीक उसी प्रकार चन्द्र देव भी नाटक दिखा कर लौट जाता है। विशेष जानकारी के लिए जिज्ञासुओं को राजप्रश्नीय सूत्र का सूर्याभ देव प्रकरण देख लेना चाहिए। - गौतम स्वामी की जिज्ञासा । भंते! ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरस्स पुच्छा। कूडागारसाला। सरीरं अणुपविट्ठा। पुवभवो। ____ एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी णामं णयरी होत्था। कोट्ठए चेइए। तत्थ णं सावत्थीए० अंगई णामं गाहावई होत्था, अढे जाव अपरिभूए। तए णं से अंगई गाहावई सावत्थीए णयरीए बहूणं णगरणिगम० जहा आणंदो॥८७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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