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________________ पुफियाओ (पुष्पिका) . . Pा तइओ वग्गो-पढमं अज्झयणं तृतीय वर्ग-प्रथम अध्ययन जइ णं भंते! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं उवंगाणं दोच्चस्स वग्गस्स कप्पवडिंसियाणं अयमढे पण्णत्ते, तच्चस्स णं भंते! वग्गस्स उवंगाणं पुफियाणं के अढे पण्णते? एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं तच्चस्स वग्गस्स पुष्फियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा चंदे सूरे सुक्के बहुपुत्तिय पुण्णं माणिभद्दे य। दत्ते सिवे बले या अणाढिए चेव बोद्धव्वे॥१॥ भावार्थ - जम्बू स्वामी ने आर्य सुधर्मा स्वामी से निवेदन किया - हे भगवन्! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने यदि कल्पावतंसिका नामक द्वितीय उपांग का पूर्वोक्त भाव (आशय) फरमाया है तो हे भगवन्! तृतीय वर्ग रूप पुष्पिका नामक उपांग का क्या भाव फरमाया है? सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया-हे जम्बू! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने तीसरे वर्ग रूप पुष्पिका नामक उपांग के दस अध्ययन कहे हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं - १. चन्द्र २. सूर्य ३. शुक्र ४. बहुपुत्रिक ५. पूर्ण ६. मानभद्र ७. दत्त ८. शिव ६. बल और १० अनादृत। ये दस अध्ययन कहे गये हैं। विवेचन - तीसरे उपांग (वर्ग) का नाम पुफियाओ (पुष्पिका) है। इसमें दस अध्ययन हैं। इन दस अध्ययनों में धार्मिक कार्य करके देवलोक में उत्पन्न होने वाले दस जीवों का वर्णन है। जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं पुफियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते!....समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णते? एवं खलु जम्बू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णाम जयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। परिसा णिग्गया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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