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________________ कल्पावतंसिका सूत्र कठिन शब्दार्थ - तारिसगंसि - चित्रों से चित्रित, वासघरंसि - वासगृह में, पडिबुद्धा - प्रतिबुद्ध-जागृत हुई, अम्मापिइ आपुच्छणा - माता-पिता से पूछ कर, गुत्तबंभयारी - गुप्त ब्रह्मचारी। भावार्थ - तदनंतर वह पद्मावती देवी किसी समय अत्यंत मनोहर चित्रों से चित्रित वासगृह में अपनी शय्या पर सोई हुई थी। शयन करते हुए उसने सिंह का स्वप्न देखा। स्वप्न देख कर वह जागृत हुई। पुत्र का जन्म हुआ। महाबल की तरह उसका भी जन्म महोत्सव मनाया गया यावत् नामकरण किया-क्योंकि हमारा यह बालक कालकुमार का पुत्र और पद्मावती का आत्मज है अतः हमारे इस बालक का नाम 'पद्म' हो। शेष सारा वर्णन महाबल कुमार के समान समझना चाहिये। आठ कन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ, आठ आठ वस्तुएं प्रीतिदान में दी गई यावत् पद्मकुमार ऊपरी श्रेष्ठ प्रासाद (महलों) में रह कर भोग भोगते हुए विचरने लगा। भगवान् महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ। परिषद् धर्मश्रवण करने के लिये निकली। कोणिक राजा भी धर्मोपदेश सुनने के लिये निकला। महाबल के समान पद्मकुमार भी भगवान् के समवसरण में पहुँचा। भगवान् के उपदेश से उसे वैराग्य हो गया। माता पिता से दीक्षा की अनुज्ञा प्राप्त कर प्रव्रजित हुआ यावत् गुप्त ब्रह्मचारी अनगार हो गया। पद्म अनगार की साधना तए णं से पउमे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थछट्ठम० जाव विहरइ॥८॥ भावार्थ - तत्पश्चात् पद्म अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के तथारूप स्थविरों के पास सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया यावत् चतुर्थभक्त, षष्ठभक्त, अष्टमभक्त' आदि विविध प्रकार की तपस्याओं से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगा। देवलोक में उत्पत्ति तए णं से पउमे अणगारे तेणं ओरालेणं जहा मेहो तहेव धम्मजागरिया चिंता एवं जहेव मेहो तहेव समणं भगवं० आपुच्छित्ता विउले जाव पाओवगए समाणे तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई बहुपडिपुण्णाई पंच Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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