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________________ वर्ग १ अध्ययन १ कोणिक का दुबारा दूत भेजना भावार्थ - यह सुनकर चेटक राजा ने उस दूत को इस प्रकार कहा - 'हे देवानुप्रिय! जिस प्रकार राजा कोणिक श्रेणिक राजा का पुत्र, चेलना रानी का आत्मज और मेरा दौहित्र है उसी प्रकार वेहल्लकुमार भी श्रेणिक राजा का पुत्र, रानी चेलना का आत्मज और मेरा दौहित्र है। श्रेणिक राजा ने अपनी जीवितावस्था में ही वेहल्लकुमार को सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ी वाला हार दिया था इसलिए यदि कोणिक राजा वेहल्लकुमार को राज्य, राष्ट्र और जनपद का आधा भाग दे दे तो मैं हार हाथी के साथ वेहल्लकुमार को भेज दूंगा।' इस प्रकार कह कर चेटक राजा ने उस दूत को आदर सत्कार के साथ विदा कर दिया। तए णं से दूए चेडएणं रण्णा पडिविसजिए समाणे जेणेव चाउग्घण्टे आसरहे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता चाउग्घण्टे आसरहं दुरूहइ दुरूहित्ता वेसालिं णयरिं मझ मज्झेणं णिग्गच्छइ णिग्गच्छित्ता सुभेहिं वसहीहिं पायरासेहिं जाव वद्धावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु सामी! चेडए राया आणवेइ-जह चेव णं कूणिए राया सेणियस्स रण्णो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए मम णत्तुए, तं चेव भाणियव्वं जाव वेहल्लं च कुमार पेसेमि, तं ण देइ णं सामी! चेडए राया सेयणगं० अट्ठारसर्वकं च हारं वेहल्लं च णो पेसेइ॥५३॥ ___ भावार्थ - चेटक राजा से विदा होकर वह दूत जहाँ पर चार घंटे वाला रथ था वहाँ आया, आकर उस रथ पर चढ़ा और वैशाली नगरी के मध्य से निकल कर अच्छी (साताकारी) बस्तियों में विश्राम करता हुआ प्रातःकालीन कलेवा (भोजन) करता हुआ चम्पा नगरी में पहुँचा। चंपानगरी में पहुंच कर राजा कोणिक के पास उपस्थित हुआ और उन्हें जयविजय से बधा कर इस प्रकार निवेदन किया- "हे स्वामिन्! चेटक राजा ने इस प्रकार फरमाया है कि जिस प्रकार कोणिक राजा श्रेणिक का पुत्र, चेलना का आत्मज और मेरा दौहित्र है उसी प्रकार वेहल्लकुमार भी श्रेणिक का पुत्र चेलना का आत्मज और मेरा दौहित्र है। इत्यादि सारा कथन कह देना चाहिए। अतः हे स्वामिन्! चेटक राजा ने सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ी वाला हार नहीं दिया है और न ही वेहल्लकुमार को भेजा है।" कोणिक का दुबारा दूत भेजना तए णं से कूणिए राया दोचंपि दूयं सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया! वेसालिं णयरिं, तत्थ णं तुमं मम अजगं चेडगं रायं जाव एवं वयाहि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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