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________________ ____ वर्ग १ अध्ययन १ श्रेणिक की मृत्यु '........................................................... पाउन्भूए-धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव अंगपडिचारियाओ णिरवसेसं भाणियव्वं जाव जाहे वि य णं तुमं वेयणाए अभिभूए महया जाव तुसिणीए संचिट्ठसि, एवं खलु तव पुत्ता! सेणिए राया अचंतणेहाणुरागरत्ते॥ ४०॥ __ भावार्थ - तदनन्तर चेलना देवी ने कोणिक से इस प्रकार कहा-हे पुत्र! जब तू मेरे गर्भ में आया था और तीन महीने पूरे हुए थे तब मुझे इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ कि - वे माताएं धन्य हैं यावत् दासियों से मैंने तुम्हें उकरड़े पर फिकवा दिया आदि यावत् जब भी तुम वेदना से पीड़ित होते और रोते चिल्लाते तब श्रेणिक राजा तुम्हारी अंगुली मुख में लेते और पीव रक्त चूसते तब तुम्हारा रोना बंद होता, तुम चुप-शांत हो जाते। इस कारण मैंने कहा कि हे पुत्र! श्रेणिक राजा तुम्हारे प्रति अत्यंत स्नेहानुराग से युक्त हैं। ____तएणं से कूणिए राया चेल्लणाए देवीए अंतिए अयमटं सोचा णिसम्म चेल्लणं देविं एवं वयासी-दुट्ठ णं अम्मो! मए कयं सेणियं रायं पियं देवयं गुरुजणगं अञ्चंतणेहाणुरागरत्तं णियलबंधणं करतेणं, तंगच्छामिणं सेणियस्सरण्णो सयमेव णियलाणि छिंदामि त्तिकद्र परसुहत्थगए जेणेव चारगसाला तेणेव पहारेत्य गमणाए॥४१॥ - कठिन शब्दार्थ - दुट्ठ - दुष्ट (बुरा), परसुहत्थगए - परशु (कुल्हाड़ी) हाथ में ले, चारगसालाकैदखाना। भावार्थ - कोणिक राजा चेलना देवी के मुख से सारा वृत्तान्त सुन कर हृदय में धारण कर चेलना देवी से इस प्रकार बोला- 'हे माता! देव समान, गुरुजन समान और अत्यंत अनुराग रखने वाले ऐसे पिता श्रेणिक राजा को कैदखाने में डाल कर मैंने अत्यंत दुष्ट कार्य किया है। अतः मैं अभी जाता हूँ और स्वयं अपने हाथों से राजा श्रेणिक की बेड़ी को काटता हूँ। इस प्रकार कह कर अपने हाथ में परशु (कुठार-कुल्हाड़ी) लिया और शीघ्रता से कैदखाने की ओर चला। श्वेणिक की मृत्यु · तए णं सेणिए राया कूणियं कुमारं परसुहत्थगयं एजमाणं पासइ पासित्ता एवं वयासी-एस णं कूणिए कुमारे अपत्थियपत्थिए जाव हिरिसिरिपरिवजिए परसुहत्थगए इह हव्वमागच्छइ, तं ण णज्जइ णं ममं केणइ कुमारेणं मारिस्सइ तिकट्ट भीए जाव संजायभए तालपुडगं विसं आसगंसि पक्खिवइ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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