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वर्ग ५ अध्ययन १ वरदत्त अनगार की जिज्ञासा और समाधान
१४७ ......................................................... एवं वयासी-सद्दहामि णं भंते! णिगंथं पावयणं जहा चित्तो जाव सावगधम्म पडिवज्जइ पडिवज्जित्ता पडिगए॥१६६॥ ___ भावार्थ - तब उस उत्तम प्रासाद पर रहे हुए निषधकुमार को जन कोलाहल आदि सुन कर कुतूहल हुआ और वह भी जमाली के समान भगवान् के समवसरण में पहुँचा यावत् धर्म सुन कर हृष्ट तुष्ट हो भगवान् को वंदन नमस्कार किया, वंदन नमस्कार कर प्रभु से इस प्रकार निवेदन किया - 'हे भगवन्! मैं निग्रंथ प्रवचन पर श्रद्धा करता हूँ आदि चित्त सारथि के समान यावत् श्रावक धर्म अंगीकार किया और अंगीकार करके लौट गया।'
वरदत्त अनगार की जिज्ञासा और समाधान तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतेवासी वरदत्ते णामं अणगारे उराले जाव विहरइ। तए णं से वरदत्ते अणगारे णिसढं कुमारं पासइ पासित्ता जायसड्ढे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-अहो णं भंते! णिसढे कुमारे इढे इहरूवे कंते कंतरूवे, एवं पिए० मणुण्णए० मणामे मणामस्वे सोमे सोमरूवे पियदंसणे सुरुवे, णिसढेणं भंते! कुमारेणं अयमेयारूवा माणुयइट्ठी किण्णा लद्धा किण्णा
पत्ता? पुच्छा जहा सूरियाभस्स। ..एवं खलु वरदत्ता! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहवे जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे
रोहीडए णामं णयरे होत्था, रिद्ध०....। मेहवण्णे उज्जाणे मणिदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे। तत्थ णं रोहीडए णयरे महब्बले णामं राया, पउमावई णामं देवी, अण्णया कयाइ तंसि तारसगंसि सयणिज्जंसि सीहं सुमिणे...., एवं जम्मणं भाणियव्वं जहा महाबलस्स, णवरं वीरंगओ णामं बत्तीसओ दाओ, बत्तीसाए रायवरकण्णगाणं पाणिं जाव उवगिज्जमाणे उवगिज्जमाणे पाउस-वरिसारत्त-सरय-. हेमंत-वसंतगिम्हपजंते छप्पि उऊ जहाविभवेणं भुंजमाणे २ कालं गालेमाणे इढे सद्द जाव विहरइ॥१७॥
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