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________________ पुष्पचूलिका और स्वच्छंदाचारिणी बन कर अकेली उपाश्रय में जाकर रहने लगी और शरीर विभूषा करने संबंधी कार्य-हाथ पैर धोना आदि पूर्ववत् करने लगी। भूता आर्या का देवलोक गमन १३८ तए णं सा भूया अज्जा बहूहिं चउत्थछट्ठ० बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सिरिवर्डिस विमाणे उववायसभाए देवसयणिज्जंसि जाव ओगाहणाए सिरिदेवित्ताए उववण्णा पंचविहाए पज्जत्तीए जाव भासामणपज्जत्तीए पज्जता । एवं खलु गोयमा ! सिरीए देवीए एसा दिव्वा देविड्डी लद्धा पत्ता । एगं पलिओ मं ठि । सिरी णं भंते! देवी जाव कहिं गच्छिहिइ० ? महाविदेहे वासे सिज्झिहि । णिक्खेवओ ।। १५६ ॥ पढमं अज्झयणं समत्तं ॥ ४ ॥ १ ॥ भावार्थ - तत्पश्चात् वह भूता आर्या चतुर्थ भक्त, षष्ठ भक्त, अष्टम भक्त आदि विविध प्रकार की तपस्या करती हुई बहुत वर्षों तक श्रमणी पर्याय का पालन करके अकृत्य कार्यों-पाप स्थानों की आलोचना प्रतिक्रमण किये बिना ही काल के समय काल करके सौधर्म कल्प के श्री अवतंसक विमान की उपपात सभा में देवशय्या पर यावत् अंगुल के असंख्यातवें भाग की अवगाहना वाली श्रीदेवी के रूप में उत्पन्न हुई यावत् आहार पर्याप्ति आदि पांच पर्याप्तियों से पर्याप्त हुई। इस प्रकार हे गौतम! श्रीदेवी ने यह दिव्य देव ऋद्धि लब्ध और प्राप्त की है। वहां उसकी स्थिति एक पल्योपम की है। हे भगवन्! श्रीदेवी देवभव से च्यव कर कहाँ जाएगी ? कहां उत्पन्न होगी ? हे गौतम! महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगी यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेगी। निक्षेप - सुधर्मा स्वामी ने जंबू स्वामी से कहा - हे जंबू ! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पुष्प चूलिका के प्रथम अध्ययन का यह भाव प्रतिपादित किया है। ॥ प्रथम अध्ययन समाप्त ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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