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________________ पुष्पिका सूत्र उस काल उस समय में मणिपदिका नाम की नगरी थी उसमें मणिभद्र नामक गाथापति रहता था। उसने स्थविर भगवंतों के पास दीक्षा अंगीकार की और ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। बहु वर्षों तक श्रामण्य पर्याय का पालन किया और मासिक संलेखना की । अनशन द्वारा साठ भक्तों का छेदन कर आलोचना प्रतिक्रमण पूर्वक काल के समय काल करके मणिभद्र विमान में देव रूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ उसकी स्थिति दो सागरोपम की है। अंत में देवलोक से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा यावत् सभी दुःखों का अन्त करेगा । सुधर्मा स्वामी फरमाते हैं - हे आयुष्मन् जंबू ! इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पुष्पिका के छठे अध्ययन का भाव निरूपण किया है। १२८ विवेचन - पांचवे अध्ययन का वर्णन सुनने के पश्चात् जंबू स्वामी ने छठे अध्ययन के भाव जानने की जिज्ञासा व्यक्त की तो प्रभु ने मणिभद्र देव व उसने पूर्वभव का वर्णन किया । मणिभद्र गाथापति ने सर्वऋद्धि समृद्धि का त्याग कर प्रव्रज्या अंगीकार की । तप संयम से अपनी आत्मा को भावित करते हुए मासिक संलेखना के साथ समाधि भावों में काल करके दो. सागरोपम की स्थिति वाले मणिभद्र देव के रूप में उत्पन्न हुए । देव भव पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्र से सिद्ध बुद्ध होंगे। Jain Education International ॥ छठा अध्ययन समाप्त ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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