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________________ पुष्पिका सूत्र उत्तर में आर्य सुधर्मा स्वामी ने फरमाया- हे आयुष्मन् जंबू ! उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ गुणशीलक नामक चैत्य था। राजगृह नगर में श्रेणिक राजा राज्य करता था । उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का राजगृह में पर्दापण हुआ । भगवान् के दर्शन और वंदन करने के लिए परिषद् निकली। विवेचन - सुधर्मा स्वामी से चौथे अध्ययन का भाव सुनने के बाद आर्य जम्बू स्वामी को पांचवें अध्ययन के भाव जानने की जिज्ञासा हुई तो प्रभु ने पांचवें अध्ययन का भाव इस प्रकार फरमाया - १२४ पूर्णभद्र देव के पूर्व भव विषयक पृच्छा तेणं कालेणं तेणं समएणं पुण्णभद्दे देवे सोहम्मे कप्पे पुण्णभद्दे विमाणे सभाए सुहम्माए पुण्णभद्दंसि सीहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं जहा सूरियाभो जव बत्तीसविहं णट्टविहिं उवदंसित्ता जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए । कुडागारसाला । पुव्वभवपुच्छा । एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे मणिवइया णामं णयरी होत्था, रिद्ध० । चंदो राया । ताराइण्णे चेइए । तत्थ णं मणिasure णयरी पुण्णभद्दे णामं गाहावई परिवसइ, अड्डे० । तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा जाव जीवियासमरणभयविप्पमुक्का बहुस्सुया बहुपरिवारा पुव्वाणुपुव्विं जाव समोसढा । परिसा णिग्गया । तए णं से पुण्णभद्दे गाहावई इमीसे कहाए लद्धट्टे० हट्ठ० जाव जहा पण्णत्तीए गंगदत्ते तहेव णिग्गच्छइ जावणिक्खतो जाव गुत्तबंभयारी ॥ १४२ ॥ भावार्थ - उस काल और उस समय में पूर्णभद्र देव सौधर्म कल्प के पूर्णभद्र विमान की सुधर्मा सभा में पूर्णभद्र सिंहासन पर चार हजार सामाजिक देवों के साथ दिव्य भोगों को भोगता हुआ विर रहा था। उसने अवधिज्ञान से भगवान् को देखा । भगवान् की सेवा में उपस्थित हुआ, वंदन नमस्कार किया और सूर्याभ देव के समान भगवान् को यावत् बत्तीस प्रकार की नाट्य विधि दिखा कर जिस दिशा से आया था पुनः उसी दिशा में चला गया। तब गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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