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________________ पुष्पिका सूत्र ३. संज्ञापना - ‘भोगों को भोग लेने के बाद ही संयम का आराधन सुकर (सरल) हैं' - इस प्रकार समझाना । ४. विज्ञापना ‘संयम ग्रहण में उसके अन्तःकरण की दृढ़ता की परीक्षा के लिए युक्ति प्रतिपादन रूप कथन से समझाना । ' जैन दर्शन में - अपने अधिकारी माता, पिता, पति आदि की आज्ञा प्राप्त किये बिना दीक्षा नहीं दी जा सकती है अतः सुभद्रा सार्थवाही ने भी अपने पति भद्र सार्थवाह से दीक्षा की आज्ञा मांगी। प्रथम तो भद्र सार्थवाह ने सुभद्रा सार्थवाही को दीक्षा लेने के लिए मना किया, किन्तु सुभद्रा सार्थवाही के दृढ़ निश्चय को देख कर अन्त में उसे दीक्षा लेने की अनुमति प्रदान कर दी। सुभद्रा का महाभिनिष्क्रमण १०६ - तणं से भद्दे सत्यवाहे विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावे ० मित्तणाइ जाव णिमंतइ.... तओ पच्छा भोंयणवेलाए जाव मित्तणाइ.... सक्कारेइ संमाणेइ, सुभद्दं सत्थवाहिं ण्हायं जाव पायच्छित्तं सव्वालंकारविभूसियं पुरिससहस्सवाहिणि सीयं दुरूहेइ । तओ सा सुभद्दा सत्थवाही मित्तणाइ जाव संबंधिसंपरिवुडा सव्विड्डीए जाव रखेणं वाणारसीणयरीए मज्झमज्झेणं जेणेव सुव्वयाणं अज्जाणं उवस्सए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता पुरिससहस्सवाहिणिं सीयं ठवेइ, सुभद्दं सत्यवाहिं सीयाओ पच्चोरुहेइ ॥ १२०॥ भावार्थ - तदनन्तर भद्र सार्थवाह ने विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम तैयार करवाया और अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन बंधुओं को आमंत्रित किया और आदर सत्कार के साथ उन्हें भोजन कराया। फिर स्नान की हुई यावत् मंगल प्रायश्चित्त आदि से युक्त सभी अलंकारों से विभूषित सुभद्रा सार्थवाही को हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने योग्य शिविका (पालकी) में बैठाया। तब वह सुभद्रा सार्थवाही मित्र, ज्ञाति, स्वजन बंधुओं और संबंधियों से युक्त सभी प्रकार की ऋद्धि समृद्धि यावत् भेरी आदि वाद्यों (बाजों) के घोष (स्वर) के साथ वाराणसी नगरी के बीचोंबीच होती हुई जहाँ सुव्रता आर्या का उपाश्रय था, वहाँ आई । आकर उस पुरुष सहस्रवाहिनी शिविका को ठहराया और वह शिविका से उतरी। तणं भद्दे सत्यवाहे सुभद्दं सत्यवाहिं पुरओ काउं जेणेव सुव्वया अज्जा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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