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________________ वर्ग ३ अध्ययन ३ देव द्वारा प्रतिबोध ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆44 तणं से देवे अंतलिक्ख- पडिवण्णे जहा असोगवरपायवे जाव पडिगए । तए णं से सोमिले कल्लं जाव जलते वागलवत्थणियत्थे किढिणसंकाइयं गिण्हs गिव्हित्ता मुद्दा मुहं बंध बंधित्ता उत्तरदिसाए उत्तराभिमुहे संपत्थि ॥ १०३ ॥ भावार्थ - तदनन्तर वह सोमिल ब्राह्मण दूसरे दिन अपराह्न काल के अंतिम प्रहर में जहाँ सप्तपर्ण वृक्ष था वहाँ आता है। उस सप्तपर्ण वृक्ष के नीचे कावड़ को रखता है कावड़ रख कर वेदी बनाता है इत्यादि जिस प्रकार अशोक वृक्ष के नीचे कार्य किये उसी प्रकार सारे कार्य यहाँ भी ि यावत् हवन किया और काष्ठ मुद्रा से अपना मुंह बांध कर मौन होकर बैठ गया। तत्पश्चात् उस सोमिल ब्राह्मण के समक्ष मध्य रात्रि के समय एक देव प्रकट हुआ और आकाश में स्थित होकर अशोक वृक्ष के नीचे जिस प्रकार पहले कहा था कि तुम्हारी प्रव्रज्या दुष्प्रव्रज्या है उसी प्रकार पुनः कहा परन्तु सोमिल ब्राह्मण ने उस देव की बात पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया। सुनी. अनसुनी करके वह मौन रह गया यावत् वह देव लौट गया । तदनन्तर वत्कल वस्त्रधारी वह सोमिल सूर्योदय होने पर कावड़ को उठा कर भाण्डोपकरण लेकर काष्ठ मुद्रा से अपना मुंह बांधता है और मुंह बांध कर उत्तर दिशा में उत्तराभिमुख हो प्रस्थित हुआ । तणं से सोमिले तइयदिवसम्मि पच्छावरण्हकालसमयंसि जेणेव असो गवरपायवे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे किढिणसंकाइयं ठवेइ ठवेत्ता वेई वड्डेइ जाव गंगं महाणइं पचत्तर पञ्चत्तरित्ता जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे किढिणसंकाइयं ठवे ठवेत्ता वेडं रएइ रइत्ता कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ बंधित्ता तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं तस्स सोमिलस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अंतियं पाउब्भवित्था, तं चैव भइ जाव पडिगए । तए णं से सोमिले जाव जलते वागलवत्थणियत्ये किढिणसंकाइयं जाव कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ बंधित्ता उत्तराए दिसाए उत्तराभिमुहे संपत्थिए ॥१०४॥ भावार्थ - तत्पश्चात् वह सोमिल ब्राह्मण तीसरे दिन अपराह्न काल में जहाँ अशोक वृक्ष वहाँ आया। वहाँ आकर कावड़ रखता है और बैठने के लिए वेदी बनाता है यावत् गंगा महानदी में प्रवेश करता है आदि पूर्ववत् सभी कार्य करके जहाँ अशोक वृक्ष था वहाँ आता है। वेदी की रचना Jain Education International ६१ *** For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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