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वर्ग. ३ अध्ययन ३ सोमिल का महाप्रस्थान
(आसन) ४. शय्याभाण्ड ५. कमण्डलु ६. लकड़ी का डंडा और अपना शरीर । तत्पश्चात् मधु, घी और चावलों से अग्नि में हवन किया और चरु तैयार किया (यानी घी से चुपड़ कर हवन के लिए पकाने योग्य चावल को सिझाया ) । बलि वैश्व देव - नित्य यज्ञ कर्म किया। अतिथि पूजा - अतिथि सत्कार किया और उसके बाद स्वयं ने आहार किया ।
तणं से सोमिले माहणरिसी दोच्चंसि छट्ठक्खमणपारणगंसि तं चैव सव्वं भाणियव्वं जाव आहारं आहारेइ, णवरं इमं णाणत्तं- दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सोमिलं माहणरिसिं, जाणि य तत्थ कंदाणि य जाव अणुजाणउत्तिकट्टु दाहिणं दिसिं पसरइ । एवं पञ्चत्थिमेणं वरुणे महाराया जाव पञ्चत्थिमं दिसिं पसरइ । उत्तरेणं वेसमणे महाराया जाव उत्तरं दिसिं पसरइ । पुव्वदिसागमेणं चत्तारि विदिसाओ भाणियव्वाओ जाव आहारं आहारेइ ॥ १०० ॥
'भावार्थ - उसके बाद उस सोमिल ब्राह्मण ऋषि ने द्वितीय षष्ठक्षपण (बेले) का पारणा आने पर पूर्वोक्तानुसार सभी कार्य किये यावत् स्वयं ने आहार ग्रहण किया । विशेषता यह है कि दक्षि दिशा में यम की प्रार्थना करते हुए कहा - 'हे दक्षिण दिशा के यम महाराज ! साधना मार्ग में प्रस्थित मुझ सोमिल ब्राह्मण की रक्षा करें और यहाँ जो कंदमूल यावत् हरित वनस्पति हैं उन्हें ग्रहण करने की आज्ञा दें। ऐसा कह कर दक्षिण दिशा में गया। इसी प्रकार पश्चिम दिशा में वरुण महाराज ! साधना मार्ग में प्रस्थित मुझ सोमिल ब्राह्मण की रक्षा करें यावत् पूर्वोक्तानुसार पश्चिम दिशा में गया । तदनन्तर उत्तर दिशा में जाने के लिए उसी प्रकार वेश्रमण की प्रार्थना की और उत्तर दिशा में गया । इस प्रकार उसने पूर्व आदि चारों दिशाओं के समान चारों विदिशाओं में भी पूर्वोक्त विधि के अनुसारआचरण किया और तत्पश्चात् आहार किया।
विवेचन - सोमिल ब्राह्मण ऋषि प्रथम बेले के पारणे के दिन जिस तरह क्रिया कर्म करता है उसी प्रकार दूसरे बेले के पारणे के दिन दक्षिण दिशा में यम की, तीसरे बेले के पारणे के दिन पश्चिम दिशा में वरुण की और चौथे बेले के पारणे के दिन उत्तर दिशा में वेश्रमण देव की प्रार्थना करता है तदनन्तरपूर्वोक्त विधि से स्वयं आहार ग्रहण करता है।
सोमिल का महाप्रस्थान
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तए णं तस्स सोमिलमाहणरिसिस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अणिञ्चजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था एवं खलु
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