SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाह्य तप ___ से किं तं इत्तरिए ? - इत्तरिए अणेगविहे पण्णत्ते। तं जहा-चउत्थभत्ते छट्ठभत्ते अट्ठमभत्ते दसमभत्ते बारसभत्ते चउद्दसभत्ते सोलसभत्ते, अद्धमासिए भत्ते, मासिए भत्ते, दोमासिए भत्ते, तेमासिए भत्ते, चउमासिए भत्ते, पंचमासिए भत्ते, छम्मासिए भत्ते। से तं इत्तरिए। भावार्थ - इत्वरिक अनशन किये कहते हैं ? - इत्वरिक अनशन के अनेक भेद कहे हैं। जैसे - चतुर्थभक्त-एक दिन रात के लिए आहार त्याग उपवास, षष्ठभक्त-दो दिन के उपवास बेला, अष्टमभक्त-तीन दिन के उपवास तेला, दशमभक्त-चार दिन के उपवास चोला, द्वादशभक्त-पांच दिन के उपवास पंचोला, चतुर्दशभक्त-छह दिन के उपवास, षोडशभक्त-सात दिन के उपवास अर्द्धमासिकभक्त-पंदरह दिन के उपवास, मासिकभक्त, द्विमासिक-भक्त, त्रैमासिकभक्त, चातुर्मासिकभक्त, पञ्चमासिकभक्त और षण्मासिकभक्त-छह महीने के उपवास। यह ऐसा इत्वरिक तप है। विवेचन - इत्वरिक अनशन के दूसरी तरह से छह भेद उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन ३० तथा औपपातिक सूत्र तथा ठाणांग ६ में बतलाये गये हैं यथा - १. श्रेणी तप, २. प्रतर तप ३. घन तप ४. वर्ग तप ५. वर्ग-वर्ग तप ६. प्रकीर्ण तप। . ___ इन तपों का विस्तृत विवेचन जिज्ञासुओं को उपरोक्त स्थलों पर देखना चाहिए। से किं तं आवकहिए ? - आवकहिए दुविहे पण्णत्ते। तं जहा - पाओवगमणे य भत्तपच्चक्खाणे य। भावार्थ - यावत्कथिक किसे कहते हैं ? - यावत्कथिक के दो भेद कहे गये हैं। जैसे - १. पादपोपगमन - वृक्ष की कटी हुई डाली के समान जीवन पर्यन्त स्थिर शरीर से रहकर आहार को त्याग देना और २. भक्तप्रत्याख्यान - जीवन पर्यन्त आहार का त्याग। . . से किं तं पाओवगमणे ? पाओवगमणे दुविहे पण्णत्ते। तं जहा-वाघाइमे य णिव्वाघाइमे य। णियमा अप्पडिकम्मे।से तं पाओवगमणे। भावार्थ- पादपोपगमन किसे कहते हैं ? पादपोपगमन के दो भेद कहे गये हैं। जैसे- १.व्याघातिमसिंह, दावानल आदि उपद्रवों के आने से निःस्पंद-निराहार रहना और २. निर्व्याघातिम-सिंह आदि के उपद्रवों के नहीं होने पर भी मरणकाल को समीप जानकर, स्वेच्छा से जीवनपर्यन्त नि:स्पंद-हलन-चलन से रहित निराहार रहना।इस अनशन में प्रतिकर्म-शरीर संस्कार खुजलाना, हलन-चलन आदि करते नहीं हैं। यह ऐसा पादपोपगमन यावत्कथिक अनशन है। से किं तं भत्तपच्चक्खाणे? भत्तपच्चक्खाणे दुविहे पण्णत्ते। तं जहा-वाघाइमे य णिव्वाघाइमे य। णियमा सप्पंडिकम्मे।सेतं भत्तपच्चक्खाणे।से तं अणसणे। भावार्थ - भक्त प्रत्याख्यान किसे कहते हैं ? - भक्त प्रत्याख्यान के दो भेद कहे गये हैं। जैसे - - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy