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________________ ५४ उववाइय सुत्त प्रवृत्ति रूप ही होती है और अशुभ क्रिया से निवृत्ति एवं शुभक्रिया में प्रवृत्ति रूप तथा अशुभ और शुभ क्रिया से सर्वथा निवृत्ति रूप गुप्ति होती है। इन दोनों को मिला कर ‘अष्ट प्रवचन माता' कहा जाता है। - गुत्ता गुत्तिंदिया गुत्तबंभयारी (गुत्तागुत्तिंदिया)। भावार्थ - वे अनगार भगवंत गुप्त-अन्तर्मुख-सर्वथा निवृत्त, गुप्तेन्द्रिय-इन्द्रियों को उनके विषयों के व्यापार में लगाने की उत्सुकता से रहित और गुप्त ब्रह्मचारी-नियमोपनियम सहित ब्रह्मचर्य के धारक अर्थात् सुरक्षित ब्रह्मचर्य वाले थे। विवेचन - शब्दादि में रागादि नहीं करने के कारण 'गुप्त' और आगम-श्रवण, ईर्या समिति आदि में इन्द्रियों को प्रवृत्त करने के कारण 'अगुप्त' अथवा 'गुप्त-अगुप्त-इन्द्रिय' - प्रवृत्ति-निवृत्ति रूप शुभ . उभयपक्ष के धारक थे। अममा अकिंचणा (अकोहा अमाणा अमाया अलोभा संता पसंता उवसंता परिनिव्वुया अणासवा अगंथा छिण्णसोया) छिण्णग्गंथा छिण्णसोया णिरुवलेवा। भावार्थ - वे अनगार भगवन्त अकिञ्चन-द्रव्य से रहित थे। वे ममत्व रहित थे। वे छिन्नग्रन्थ थे अर्थात् संसार से जोड़ने वाले पदार्थों से मुक्त थे। अतः छिन्नस्रोत थे अर्थात् शोक-आर्तता से रहित थेसंसार प्रवाह में नहीं बहते थे तथा निरुपलेप अर्थात् कर्मबन्ध के हेतुओं से रहित थे। वे क्रोध मान माया और लोभ से रहित थे। बाहर तथा आभ्यन्तर से शान्तियुक्त थे। अतएव उपशान्त अर्थात् शीतलीभूत थे। परिनिर्वृत अर्थात् कर्मकृत विकार से रहित होने के कारण शीतल थे। आस्रव रहित थे। निर्ग्रन्थों की उपमाएँ संग्रह गाथा कंसे १ संखे २ जीवे ३ गयणे ४ वाए ५ य सारए सलिले ६। पुक्खरपत्ते ७ कुम्मे ८ विहगे ९ खग्गे य १० भारंडे ११॥१॥ कुंजर १२ वसहे १३ सीहे १४ नगराया चेव १५ सागरक्खोहे १६ । चंदे १७ सूरे १८ कणगे १९ वसुंधरा चेव २० सुहूयहुए २१॥२॥ कंसपाईव मुक्क-तोया १ - कांस्य पात्री के समान स्नेह रूप पानी से मुक्त थे। विवेचन - कांसे के बर्तन में पानी का लेप नहीं लगता है। यद्यपि वह पानी को धारण करता है, तथापि वह कोरा का कोरा ही रहता है। इसी प्रकार वे अनगार भगवन्त शिष्यों के परिवार से युक्त थे, उपदेश आदि की प्रवृत्ति भी करते थे और व्यवहार में वत्सल भी दिखाई देते थे, किन्तु अन्तरंग में वे स्नेह-रहित थे। क्योंकि स्नेह बन्धन का कारण है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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