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अनगारों के गुण mmmmmmmmmmmorrormirmirrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrorm
अर्थ - 'कु' का अर्थ है पृथ्वी। 'त्रि' का अर्थ है तीन लोक और 'कापण' का अर्थ है दुकान। उसका समुदित अर्थ यह हुआ कि-ऐसी दुकान जहाँ तीनों लोक की वस्तुएँ मिलती है। यह देवाधिष्ठित होती है।
सव्वक्खर-सण्णिवाइणो, सव्व-भासाणुगामिणो, अजिणा जिणसंकासा, जिणा इव अवितहं वागरमाणा संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरंति।
भावार्थ - वे अनगार भगवन्त अक्षरों के सभी संयोगों को जानते थे। सर्वभाषा को जानने वाले थे। जिन-सर्वज्ञ नहीं होते हुए भी जिन के समान थे। वे सर्वज्ञ के समान वास्तविक प्रतिपादन करते हुए संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरते थे।
विवेचन - सर्वाक्षर-सन्निपाती-सभी अक्षरों-उच्चारणध्वनियों के एक-दो आदि विभिन्न संयोगों से, जितने भी शब्द बनते हैं, उन सभी को जानने वाले को 'सर्वाक्षर-सन्निपाती' लब्धि का धारक कहा जाता है।
सर्वभाषानुगामी - आर्य, अनार्य, मनुष्य, तिर्यञ्च और देवों की सभी भाषाओं के बोलने वाले अथवा अपनी भाषा में ही बोलते हुए भी अतिशय विशेष से सुनने वाले को अपनी-अपनी भाषा में बोलते हुए प्रतीत हो, ऐसी शक्ति के धारक अथवा संस्कृत, प्राकृत, मागधी आदि भाषाओं में व्याख्यान करने वाले।
अनगारों के गुण १७-तेणंकालेणं तेणंसमएणंसमणस्स भगवओमहावीरस्सअंतेवासी बहवे अणगारा भगवंतो। . भावार्थ - उस काल-उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के बहुत से अन्तेवासी अनगार भगवन्त उनके साथ थे, वे कैसे थे ?
ईरियासमिया भासासमिया एसणासमिया आदाण-भंडमत्त-णिक्खेवणासमिया उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिट्ठावणिया-समिया मणगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता। . भावार्थ - वे अनगार भगवन्त हलन-चलनादि क्रिया, भाषा के प्रयोग, आहारादि की याचना, पात्र आदि के उठान-रखने और मल-मूत्र, खेकार, नाक आदि के मैल को त्यागने में यतनावान् थे। मन, वचन और काया की क्रिया का निरोध करने वाले थे।
विवेचन - संयम के अनुकूल यतनापूर्वक की जाने वाली प्रवृत्ति को समिति कहते हैं और आत्म-रमण के लिये जिन क्रियाओं से निवृत्ति ली जाती है उन्हें गुप्ति कहते हैं। समिति केवल शुभ
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