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________________ [5] के साथ संक्षिप्त हिन्दी अनुवाद था। जो काफी समय से अनुपलब्ध था। अब इस सूत्र को संघ द्वारा प्रकाशित भगवती सूत्र की शैली (Patterm) पर तैयार किया गया है। मूल पाठ, कठिन शब्दार्थ, भावार्थ तथा आवश्यकतानुसार स्थान-स्थान पर विवेचन भी दिया गया है। ___ इस सूत्र की प्रेस काफी सुश्रावक श्री पारसमल जी सा. चण्डालिया ने तैयार की। जिसे आदरणीय मुमुक्षु आत्मा श्री धनराजजी बडेरा (वर्तमान में धर्मेश मुनि) एवं सेवाभावी सुश्रावक श्री हीराचन्द जी सा. पीचा ने पूज्य "वीरपुत्र जी" म. सा. को सुनाया। पूज्य श्री ने जहाँ उचित समझा संशोधन बताया वह किया। इसके पश्चात् पुनः इसे श्रीमान् पारसमल जी सा. चण्डालिया एवं मेरे द्वारा अवलोकन किया गया। इस प्रकार इस सूत्र को तैयार करने में पूर्ण सर्तकता एवं सावधानी बरती गई है। बावजूद इसके आगम ज्ञान की अल्पता, मुद्रण दोष से कोई त्रुटि रह गई हो तो तत्त्वज्ञ आगम मनीषीयों से निवेदन है कि हमे सूचित कर अनुग्रहित करावें। ____ संघ का आगम प्रकाशन का काम प्रगति पर है। इस आगम प्रकाशन के कार्य में धर्म प्राण समाज रल तत्त्वज्ञ सुश्रावक श्री जशवंतलाल भाई शाह एवं श्राविका रत्न श्रीमती मंगला बहन शाह, बम्बई की गहन रुचि है। आपकी भावना है कि संघ द्वारा जितने भी आगम प्रकाशन हो वे अर्द्ध मूल्य में ही बिक्री के लिए पाठकों को उपलब्ध हो। इसके लिए उन्होंने सम्पूर्ण आर्थिक सहयोग प्रदान करने की आज्ञा प्रदान की है। तदनुसार प्रस्तुत आगम पाठकों को उपलब्ध कराया जा रहा है, संघ एवं पाठक वर्ग आपके इस सहयोग के लिए आभारी है। आदरणीय शाह साहब तत्त्वज्ञ एवं आगमों के अच्छे ज्ञाता हैं। आप का अधिकांश समय धर्म साधना आराधना में बीतता है। प्रसन्नता एवं गर्व तो इस बात का है कि आप स्वयं तो आगमों का पठन-पाठन करते ही हैं, पर आपके सम्पर्क में आने वाले चतुर्विध संघ के सदस्यों को भी आगम की वाचनादि देकर जिनशासन की खूब प्रभावना करते हैं। आज के इस हीयमान युग में आप जैसे तत्त्वज्ञ श्रावक रत्न का मिलना जिनशासन के लिए गौरव की बात है। आपकी धर्म सहायिका श्रीमती मंगलाबहन शाह एवं पुत्र रत्न मयंकभाई शाह एवं श्रेयांसभाई शाह भी आपके पद चिन्हों पर चलने वाले हैं। आप सभी को आगमों एवं थोकड़ों का गहन अभ्यास है। आपके धार्मिक जीवन को देख कर प्रमोद होता है। आप चिरायु हो एवं शासन की प्रभावना करते रहे। उववाई सूत्र की प्रथम आवृत्ति अगस्त २००१ में प्रकाशित हुई थी। जो कुछ ही समय में अप्राप्य हो गई। अब इसकी यह द्वितीय आवृत्ति प्रकाशित की जा रही है। पाठक बंधुओं से निवेदन है कि इस नवीन आवृत्ति का अधिक से अधिक लाभ उठावें। इसी शुभ भावना के साथ! ब्यावर (राजस्थान) संघ सेवक दिनांक : १०-४-२००५ नेमीचन्द बांठिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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